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________________ ११२ रिटणेमिचरिउ संजम-णीसारेहि अवहत्थेहि संगु ण किज्जइ सहुं पासत्थेहि केण वि महुं विवाउ ण करेवउ मण-करि णाणंकुसेण धरेवउ ४ णिय गणु चक्खु जेम रक्खेवउ परु अप्पाणु समाणु करेवउ परिहरिएवउ लोयह सावणु ___णह-छेयणु दसणाल-धोवणु अंजणु पाय-रक्खु तणु-ताणउं धुप्पि-समलणुव्वत्तएण-हाणउं दसणु णाणु रित्तु धरेवउ संजमत्थु तव-चरणु चरेवउ ८ घत्ता पालेका पंच महा-वय पंचेदियइ दमेवाइ । जीहोयर-कर-कम-गुज्झइ आयइं अंकुसिएवाई। [३] ४ देव-भत्ति गुरु-भत्ति करेवी चेइ-भत्ति सुय-भत्ति करेवी अभय-दाणु छज्जोवह देवउं विसय-कसाय-सेण्णु भंजेवउ महिला-संगु सुठु विरुवारउ दुक्किय-कम्म-णिवंधण-गारउ सो सप्पुरिसु जुवइ जो छंडइ । जाहे पहावे जोगिहिं हिंडइ जइ ण णारि णारितणु सारइ तो सव्वहो विमोक्खु को वारइ सो णरु तित्थयरत्तणु पावई सोलह कारणाई जो भावइ मूल-गुणवोस पालेवा स-परीसह उवसग सहेवा साहम्मिय-वच्छल्ल करेवी एव एह अणुसठि लएवी घता मंघाहिउ एलायरियहो अपरिग्गहु मोह-विवज्जिउ सम्व समापेवि णीसरइ । पर-गण-चरिए पइसरई ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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