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उणपणासमो संधि
गंगेयहो हंस-महा-रिसि इंदभूइ मगसरहो |
आराहण कहइ पयतेण गंगेयह चारण- रिसिणा मल - हरणइ मोक्खहो कारणइ
सारहु लिंगु सिक्ख विष्णासिय सहुं अणियय-विहारु परिणामें भाव - णिसेणि पंच - विह भावण वार पगरणाई महि सिउइ raan - दिस पगरणु तेरहमउ सुद्धायारु महा-गुणवंतउ
एलाइरिउ
परिट्ठत्रिएव
देह - भारु हउं बहेवि ण सक्कमि
जगु भक्खिर सायरु सोसिउ कंचुवर जेम अहि मेल्लइ
सल्लेहण - विहाणु मणे भावेवि संधाहिवेण महा-गुणवंते रि- ११
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जिह समाहि भव्वो णरहो || १ वार सुन्तई अक्खियइ' । ते जि णिय-मणे लक्खियइ ||२
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सहं विणण समाहि पयासिय उबहि- परिग्गह- इ-धज जण-गामें अभितर वाहिर सल्लेहण जाइ पंच परमेट्ठिहि दिइ णिरवसेसु सीसा - परियामिउ अविसम - सीलु दया- दम-वंतउ संघाहिवेण संधु पत्थेव उ निवडइ जेत्थु तेत्थु परिसक्कमि ८
घन्ता
तो-वि ण पात्रहो जाय दिहि | मुर्यामि ते दुक्ख - णिहि ॥ ९
[२]
गोखमेव गणु सयलु खमावेवि अणु - सिक्aत्रण करेवी जंते'
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