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तेतालीसमो स घि
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धत्ता सत्तहिं सरेहिं तुरय हय सो-वि सत्तिए भिण्णउ । दिण्ण वसुंधर देवयहो णावइ उच्छिण्णउ
दुवई सुअसोमेण ताम ओसारिउ आजाणुय-वाहेहिं । दिणयर-रह-तुरंग-खगराय- पहजण-जव-सगाहेहिं ॥ दोमइ-सुयहो ताम सुय कुंतिहे पलय-पयंग-सम-प्पह-दित्तिहे आमिस-लुद्धएण जिह सेणे पाडिय चाव-लट्ठि जयसेणे सो-वि रणंगणे समर.सणीएं दुमय-सुया-सुएण धणु-वीएं दसहिं सरेहि विद्ध वच्छत्थले मुच्छा-विहलु पडिउ महि-मंडले जहिं पयंडु पंचालिहे गंदणु तहिं दुक्कण्णे वाहिउ संदणु पिहिउ सिलीमुहेहि अ-पमाणेहि अण्णाणंध णाई अण्णाणेहिं वाण-जाल त हणेवि सु-भीसणु जिण्णु दुकण्णहो तणउं सरासणु रहु जोत्तारु तुरंगम चिंघउ सीस-ताणु तणु-ताणु-वि विद्ध
पत्ता
थरहरंतु अवरेक्कु सरु रेवा वाहे जिह विझु
वच्छत्थले लाइउ । दुकण्ण-कण्णु दोहाइउ ॥
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___ दुवई उडिर-कंड-मंडिय-
पयंड कोयंड-वीयहो । भायर अवर अवर पडिधाइय पंच-वि तिय अणीयहो ।। १ दुम्महु सहुं दुम्मरिसणु दुज्जउ उत्तमु सत्तु सत्तु सत्तुजउ पंच-वि एक्कहो भिडिय महाहवे अमर-वर गण-जय-सिरि-लाहवे संदणएण संदाणिय-संदणे तहिं पडिवण्णए भड-कडवंदणे कइकय पंच परिट्ठिअ अंतरे णं पंचेदिय देहभंतरे
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