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पंचचालीसमो संधि
१२१ दस सहास मय-मत्त गइंदह हय-ढक्कह पक्खर-पिहियंगह सिक्किणि परि लिहंतु णह-सीयरु गय-साहणे पइट रयणीयरु. ४ के-वि करेहिं धरेवि भमाडिय केहि-मि के-वि पडतेहिं पाडिय क्ण्णेहिं के-वि लेवि जुज्झाविय काह-मि सम-सुत्ती दरिसाविय के-वि पडंति भिण्ण-कुंभत्थल दूरुच्छलिय-धवल-मुत्ताहल के-वि अ-वाइय घाइय भक्खिय चप्पिय चूरिय चूसिय चक्खिय ८
पत्ता गय-घड धुणइ सिरु ओसरइ ण अप्पउं धीरइ । विमुहिय वेस जिह दाणेण-वि धरेवि ण तीरइ ।।
[१५] गय-घड त? णट्ठ विवरेरी णं णव-वहुय वियड्ढहो केरी तो कुरु-णाहे वाहिउ संदणु तिण-समु मण्णेवि भीमहो गंदणु घाइय अंग-रक्ख तहो केरा जे दुग्धोट-थट्ट भंजेरा विजुलजीहु पमाहि महंतउ अवरु महंतउ दुज्जववंतउ एक्केकेण लोह-णाराएं णिहय चयारि-वि कउरव-राएं धाइउ भीमसेणि स-सरासणु णाई कयंतु करंतु गवेसणु छाइड कुरुव-णराहिउ वाणेहिं आयस-वइणवेहि अपमाणेहि पाय पडिच्छओ य मइ-गम्मिय कवड दुरोयर-सरयण-णामिय
धत्ता तो दुज्जोहणेण सर पंचवीस णिम्मोइय । काले कुद्धएण णं स-विस भुयंगम चोइय ॥
[१६] कुरु-णाराय-धाय-कडुआविउ जाउहाणु संदेहि चडाविउ उच्छलंत-वण-सोणिय-सीहरु णं संचारिम-धाउ महीहरु
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