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________________ ९० ग्?िणेमिचरिउ ७ ८ गंगेउ वलिउ धणु स-सरु लेवि पंडव-संतण आभिट्ट वे-वि रणु जाउ भयंकर दुण्णिरिक्खु सर-मंडव-मंडिय-अंतरिक्खु सोडीरह सिरई समुच्छलंति णं फलई ताल-वितह पडंति धत्ता कुरु-पंडव-बलई विभिण्णई वांणेहिं पत्थ-पियामहेहिं । रण-भूमि मुएवि पणट्टइं दिस-विदिसिहं पह-उप्पहेहिं ॥ [७] रणु धोरु जाउ पुब्बण्ह-काले थिउ विहि-मि विओयह अंतराले आभिट्ट पियामह-भीमसेण पोमाइय सकें स-रहसेण स-कलिंगु स-साहणु कुरुव-राउ गंगेयहो रक्खणे मित्तु आउ अणवरय-रइय-सर-मंडवेहि भीमु-वि परिवारिउ पडवेहि तहिं काले किरीडि कइंद-केउ पडिवारउ पङि-संगाम हेउ विप्फारिय-धणु उद्धसिय-गत्त मुह-पवणाऊरिय-देवयत्त णिय-सीह-णाय-वहिरिय-णहद्ध तोणीरालंकिय-पच्छिमद्ध आवीलिय-गोहंगुलिय-ताणु सय-सहसक्खोहणि-णिसिय वाणु धत्ता सीमंतेवि सयलु-त्रि साहणु तहो कोमार-महा-वयहो । गंगेयहो भिडिउ. धणंजउ जेम गइंदु महागयहो ॥ . .. [८] रणु जाउ पियाभह-अज्जुणाह एत्तहे-वि दोण-धज्जुणाह एत्तहे-वि विओयर-सिंधवाह सहएव-विसल्लह जय-मणाह एत्तहे-वि सच्च-भूरीवाह एत्तहे-वि दुमय-दोणायणाह एत्तहे-वि पचोइय-संदणाहं भाणुमइ-सुहद्दा-णंदणाह' 6. 7 b-J, मयगल मुत्ताहल विक्खरंति ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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