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________________ बायालीसमो संधि सूई-वियाढ दुईसणीय वइहत्यिय णालिय अंजणीय वर तीरिय तोमर वरच्छदंत अवर-वि परिपेसिय थरहरंत तेहर पडिवण्णए समर-काले थिउ स-धणु धणंजउ अंतराले सर-सएण समाहउ गंग-पुत्त गुरु कुरुव-परिंदें एम वुत्त रिउ वूह-वारु विद्दलेवि आय तुहु काई ण पहरहि अक्खु ताय घत्ता तो वुच्चइ दोगायरिएण हउं इंदहो बिमाणु मिलमि । पर अज्जुणु धरेवि ण सक्कमि भीमु खणंतर पडिखलमि ।। १० गउ एम भणेवि णिवद्ध-तोगु किर भीमहो भिडइण भिडइ दोणु तहिं काले अणुत्तम-संदणेण हक्कारिउ माहवि-णंदणेण वलु वलु अवहेरि करेवि कीसु तुहु गुरु-गुरु हउं तउ सीस-सीसु णउ पई लग्जावमि कहिउ तुझु कुरु पंडव सुर पेक्खंतु जुझु सो एम चवंतु महत्तरेण वाहुवह मज्झे ताडिउ सरेण मुच्छा -विहलंघलिहूउ जाम मदाहिब-गुरु-गंगेय ताम तें भीमें धरिय समच्छरेण णं तिण्णि काल संवच्छरेण तेहि-मि समकंडिउ पंडु-पुत्त आरोडिउ करिहिं व सीहु सुत्त पत्ता पंचाली-सुहद्दा-तणएहि छहि-मि णिरुद्धा तिणि जण । मध-रोहिणि-उत्तरा-रिक्खहुँ णं गयउरिणितट्ठ(?) घण ॥ अण्णेत्तहे पाडेवि वलहो खंडि अवहेरि करेवि गउ सरिय-सूणु हक्कारिउ दोणे दुमय-पुत्त तो कालकेय-तव-तालु-मारि गंगेयहो अहिमुहु थिउ सिहडि णं केसरि-दंसणे ल्हसिउ थूणु वलु वलु गुरु जइ रण-वसण-भुत्तु थिउ अंतरेण गंडीव-धारि ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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