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________________ . १२८ अवहे जे भड-कडवंदणेण पुणु विहिं तो तणु-ताणु छिण्णु गउ मोहहो तो वि ण जाउहाणु जग - मोह पेसिउ ताम सत्थु ओसारिउ आरिससिंगि रणे जिह मत्त - इंद मयाहित्रेण दुज्जोहणु पभणइ थाहि थाह ऋणु हणु अपसत्थु अपत्थु वालु मं भज्जहि मंजहि वइरि - विंदु अप्पाइय-मायउ जाउ जाउ हय चउ तुरंग विद्दविउ सूउ गउ कहि-भि अलंवुसु पाण लेवि हक्कारिउ ताम पियामहेण तवणीय-ताल-तरु-केयणेण नणंद-संत-णंदणेहि णं पट्टु णित्र जुहिट्टिलहो Jain Education International घत्ता किय णर-णंदणेण सय-खंड वायरणु व वुहेहि सरीरु भिण्णु पडिवारउ विरइउ परम - थाणु तिमि अहि-मयरत्थे किउ णिरत्थु रिट्ठणे मिचरिउ किव-दोणायण-दोन जिय । पाराउट्ठा सव किय ॥ [६] लुलु कहिँ आरिससिंग जाहि आयो आसण्णीहूड कालु तं णिसुणेत्रि वलिउ णिसायरिंदु अहिवण्णु णिवारइ ताउ ताउ घउ पाडिउ विरहु णिरत्थु हूउ कुरु- सेण्णु-त्रि रणउहे पुट्टि देवि सेयासे से - महा-रहेण दुग्वार-महा-रिङ-भेयणेण घत्ता सरेहिं परोपरु छाइउ | अज्जुणु ताम पराइउ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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