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छायालीसमो स घि
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[७] पंचहि णाराएहि गंग-पुत्त विणिवारेवि रणे अहिमण्णु पत्तु एत्तहिं किवेण जय-सिरि-समिद्ध सिणि-णंदणु णहि सरेहि विद्ध णव-णवहिं हणेविणु णराउ मुक्कु सो आसत्थामें णहे विलुक्कु जं दिट्ट वाणु वाणेण खलिउ किउ मेल्लेवि दोणायणहो चलिउ जुजुहाण-दोणि आभिट्ट वे-वि सवडम्मुहु रहु रहवरहो देवि सइणेयहो पाडिय चाव-लट्टि धणु अवरु लेवि सर घिविय सट्ठि मुच्छा-विहलंघलु दोण-पुत्तु धय-दंडु घरेप्पिणु थिउ मुहुत्तु चेयणे लहेवि सिणि-सूणु विद्ध उरु भिदेवि सरु घरणिहि णिसिद्ध
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घत्ता
तो दोणायरिएं सु-कुद्धए सच्चइ वीसहि सरेहिं हउ । णिकंपु परिट्ठिउ मेरु जिह पडिवउ भिडिउण मुच्छ गउ ॥ ९
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पडिवण्णए तहिं संगाम-काले गुरु-सीस परोप्पर भिडिय वे-वि सेयासे परिह-सम-प्पहेहि कम्मार-कम्म-परिमज्जिएहि
वीभत्थु परिट्टिउ अंतराले गंडीव-पवर-घणुधरई लेवि दिणयर-कढोर-कर-दूसहेहि गिट्ठर-भुय-अंत-विसज्जिएहिं गुरु विद्धु णाई दुमु अलि-गणेहिं णर-सर विणिवारिय ण किउ खेउ पेसिउ सुसम्मु दुज्जोहणेण आलाण-खंभु णं विहिं गयाहं
सत्तारह-वारह-मग्गणेहिं आरुटूठु सुठु मणे भूमि-देउ तहिं अवसरे पर-मइ-मोहणेण थिउ अंतरे दोण-धणंजयाहं
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