SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ रिट्ठणेमिचरिउ घत्ता जे सर पट्टविय तिगत्तेहिं ते विणिवारेवि अज्जुणेण । णं दुक्ख-विद्वत्ता अंत-गुण णासिय एक्के अवगुणेण ॥ [९] तो पत्थे णिय-कुल-पायवेण अरि-तरु उड्डाविय वायवेण दोणेण-वि पेसिउ महिहरत्थु कंपावणु पावणु किउ णिरत्थु णर-कर-सर-सीरिउ थाण-भट्ठ । जालंधर-साहणु कहि-मि गठ्ठ एत्तहे वि जुहिट्ठिलु राणा हिं वेटिउ एक्केक्क-पहाणएहि विंदाणुविंद-किव-सउबलेहि भूरीसव-सल्ल-विहव्वलेहि भययत्त-सोमयत्ताहि वेहि आएहि' अवरेहि-मि पत्थिवेहिं एतहे-वि विओयरु वारणेहिं णं छाइउ विझु महा-घणेहिं रहु छंडेवि धाइड भीमसेणु ण केसरि विणिवारिय-करेणु घत्ता किउ गयउलु गय-वलु गय-वलेण भीमें रहसाइट्टिएण । उड्डाविउ जलहर-विंदु जिह पवणे मज्झे परिट्टिएण ॥ ९ [१०] तहिं तेहए काले पियामहेण ओवाहिय-पवर-महारहेण पंडव-सामंत महंत जोह मायंग तुरंगभ रहवरोह धय कवय-छत्त-चामर-समिद्ध तिहिं तिहिं णाराएहिं सव्व विद्ध तेहि-मि समरंमणे दुज्जएहिं मच्छाहिव-सोमय-सिंजएहिं कइकय-पंचालेहिं पंडवेहि अवरेहिं रइय-सर-मंडहिं संतणउ विद्ध बहु-मच्छरेहि धट्ठज्जुणेण तिहि तोमरेहि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy