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छायालीसमो संधि
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घत्ता रणे एक्कहो अज्जुण-गंदणहो समुहु ण थक्कइ कुरुव-बलु । उत्थरइ बलई पासेहिं भमइ णं मंदरहो समुद्द-जलु ॥
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तहिं काले कुरुव-परमेसरेण पट्टविउ अलंबुसु मन्छरेण तुहुं करहि कुमारहो माण-भंगु विद्धंसहि साहणु चाउरंगु दप्पुद्धरु धाइउ जाउहाणु णं लग्गु वणंतरे चित्तभाणु सेणा-मुहु जगडिउ णिरवसेसु समुहिंतु पडिच्छिउ रक्खसेसु
पंचहिं पंचालिहे णंदणेहिं विच्चाले पचोइय-संदणेहि समकंडिउ खंडिउ छत्त-दडु घउ विदउ खुडिउ पडाय-संडु पडिविझें देहावरणु डिण्णु तणु भिदेवि पुणु महिवटु भिण्णु मुच्छ-विहलंघल रहे णिसण्णु कह-कह-वि समुट्ठिउ लद्ध-सण्णु हय हयवर सारहि स-धणु विद्ध एक्केकउ तिहिं तिहिं सरहिं विद्ध
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घत्ता
किय पंच-वि वि-रह णिसायरेण साहेज्जउ दितउ पंडवह
धाइउ ताव सुहद्द-सुउ । णाई पुरंदरु सग्ग-चुउ ॥ १०
मायामउ रक्खु वलपमेउ विण्णि-वि पहरंति महाणुभाव सउहदें देवइ-सुय-सुएण तेण वाहिणि वारिय स-रहसेण
दिव्वत्थ-कुसलु हरि-भाइणेउ आयस-णाराय सुवण्ण-चाव सर पेसिय अट्ठ महा-भुएण पुणु लक्खु विसज्जिउ रक्खसेण ४
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