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________________ २०२ तर्हि अत्रसरे णयणाणंदणेण पउमावइ-दोणाओहणेण गुरु पेक्खु पेक्कु रणे वावरंतु सोमय सिंजय कइकइ कहांतु णं हरि करि जमउरे पङ्कवंतु णं इंदु गिरिदह असणि हिंतु - एक्कल्लउ वट्टई पवशु जाम दुज्जोहण वयण विरामे कण्णु य-कुल- णह-पेंसर णिय एक्aहिं पडिलग्गए किं धरिउ विओयरु वावरं तु अहिमण्णु घुडुक्कउ दुमउ पंडि परिक्खु नियय-गुरु कुरु- वरेण्णु तं णिसुणेवि हय-गय- रहवरेहिं पंडवहि-मि परिमिउ भीमसेणु णं णहयर णाहु विहंगमेहि परिरक्खिउ रहवरु कुवरत्थु वेरुलिय-महाविधय-सणाहु सेो भीमु समच्छरु कहि जाहि जियंतङ Jain Education International (१९) घत्ता महि - परमेसर भीमे अभग्गए गंधर- सम-संदणेण रविपुत्त वुत्तु दुज्जोहणेण ण स-घणु महा-घणु उत्थरंतु ण वणदउ तिण-तरुवर डह तु णं पणु पओहर गिट्ठबंतु णं गरुड्डु भुयंगम खयहो किंतु किं तेण घरिज्जइ समरे ताम पभणइ चामीयर - णियर वण्णु रिमिचरिउ धत्ता तोसिय-अच्छरु एभ भणतउ खद्धउ कउरव सेण्णु गये । दोगे को त्रिण भग्गु रणे ॥ ६ ( २० ) गय- घाएहिं गयबर जज्जरंतु धट्टज्जुणु सिणिणंदणु सिह डिझ पीडिज्जइ जाम ण कुरुव-सेण्णु रक्खिउ कलस-द्रउ कुरु-गरेर्हि ४ णं पवर - गिरिदेहि सुर-करेणु णं सेसु असेस भुवंग मेहि स- जडासुर-ग-जगडण-समत्थु जय - जोत्तिय-रीरी-वण-वा ४ For Private & Personal Use Only भामिय-गरुय-गयाउहउ | धाइ दाणो समुह || ९ www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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