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रिट्ठणेमिचरिउ
वरि उप्परि चडिउ हुवासणहो वरि मंडल गंधारिहिं(?) वसिउ
वरि जीविउ गउ जम-सासणहो ण-वि जूअ-विटत्तउ अहिलसिउ ८
घत्ता
जहिं णरिंदु जूयारिउ तं देसु वि गंदंतउ
अह परयारिउ दुण्णयवंतउ
वसुमइ-रणपिडु मंडइ । लच्छि जणद्दण छंडइ ।
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तं णिसुणेवि सच्चइ कुइउ मणे सह-मंडवे तिण-समु गणेवि मई तुहुं चक्किहे गुरु णारायणहो को अवरु जुहि ट्ठिलु अहिखिवइ परमेसरु सोम-वंस-तिल मह-णरु एहु गुरु भीमज्जुणहो पइसारमि इंदपत्थु णयरु अच्छहो पेछंता हरि-वलहो
णं गज्जिउ पलय-मेहु गयणे संकरिसण वोल्लिउ काई पई वसुएव-सरिसु अहिवायणहो को फणिवइ फण-कङप्पु छिवइ ४. जहिं अच्छइ सो पवित्त णिलउ को करइ ण पक्खवाउ गुणहो देवावमि दुंदुहि-सुर-पयरु हउं एकु पहुच्चमि पर-वलहो ८
धत्ता
चूरमि रह-गय-वाहणु कउरव-साहणु उब्भिय-वीर-पडायहो। अच्छउ तुडिहे वलगगी महि आवग्गी देमि जुहिट्ठिल-रायहो ॥
९
कियवम्मु ताम मणे विक्कुइउ णं धूमिरु धूमकेउ उइउ जइ तुहं अणिराइउ पंडवहं तो मिलिउ गपि हउ कउरवहं जाणिज्जइ तुम्हहं अम्हह-मि सुहडत्तणु रणमुहे सव्वह-मि वारमइ मुएप्पिणु नीसरिउ अक्स्वोहणि-साहण-परियरिउ | 6.9.a भां. भडायहो; ज. उज्झिवीय खडायही
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