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________________ सम संधि ताम धणंज एण णं विसहर णिवारिया [ १७ ] (हेला) सर कप्पिया सरेहिं । विसम-विसहरेहिं ॥ तो वरुण सुरण सुआउहेण तहिं अज्जुणु एक्कें चिंधे विद्धु उहि णारएहिं णरेण विद्धु पंडवेण संख - परिवज्जिएहिं हर सारहि सीरिय वर तुरंग तहिं अवसरे सरि-रयणुक्ख- -गत्त जइयहुं वण्णासए लडु पुत्त अजरामर किज्जइ किण्ण तोड Jain Education International जा करिवर- करड-मयंवु-सित्त सुर- कुसुमोमालिय दिष्ण-धूअ दुद्दम- रिंद विद्दण - सील दुपक्ख- - तिक्ख-पडित्रक्ख- पलय चितियमेत्त आय सा णाई सु-कंत कंतहो कोवंड - चंड-कंडाउण सत्तरिहि जणदणु पडिणिसिद्धु तो सरि-सुएण सत्तरि - णिसिद्धु वाणेहि गंडीब-विसज्जिएहि घन्ता पुणु-वि नियंत्रिणि पियएण पयतें वुच्चइ | जो ण-वि जुज्झइ तहो संगामे ण मुच्चइ ॥ घउ पाडिउ दोहाइय रहंग गय चिंतय वारुणि वारुणत्त तइयहुं पणवेष्पिणु वरुणु वृत्त गय दिण्ण तेण लइ एम होउ [१८] (हेला) हयलाणुलग्गा । करयले बलग्गा ॥ वर - चंदण - कदम ( 2 ) - वित्ति कंकाल - करणि जम-पडिम धूअ णं गय-जिहेण थिय अमर-लील परिमल-मेलात्रिय-भसल - वलय For Private & Personal Use Only ४३ ८ www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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