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________________ ४४ जग - जीव - गवेसण - करण कुंढ - कारिणि णरवरह (१) पदीह भूमीव भुवण - भोयण - रुसाढ कालायस - घडिय सुवण्ण-वण्ण भइ जणद्दणु तो एक्कु ण-वि जिज्जइ एह लउडि जइ एव-मि पसिद्धि एहु अज्जुण भरु सव्त्रो - वि मज्झु थिउ मुवि धम्म-संघाणु पत्थु हकारिउ वइरि तिविकमेण तो कोवे गएण गया उहेण किं किज्जइ अण्णे आहवेण उक्कमइ एहु जे कलह - मूल तो मुक्क गयासणि महुमहासु जीमुत्तें विज्जु व महिहरासु हरि-वच्छ-त्थले णाई चडाविय Jain Education International णं काल - गइंदहो तणिय सुंढ णं विउल लटाविय जमेण जीह णं गलिय कयंतो तणिय दाढ णं फुरिय - महामणि णाग- कण्ण घत्ता जइ पट्ठविय महा-गय | दुक्करु जावई धणंजय ॥ [१९] (हेला) उझिए पहरणं । तो काई जुज्झिएणं ॥ रिट्टणेमिचरिउ थिउ कारणु भारिउ तउ असज्झु हउँ करमि उवाएं रिउ णिरत्थु लइ मेल्लि लउडि णिय-विकमेण परिचितिउ एउ सुआउहेण रु हिउ जे हिएं माहवेण फेडिज करव-पट्टसूल दहगीवें सत्ति व लक्खणासु हिमवंते गंग व सायरासु घन्ता पडिय नियंतही इंदहो । कमल - माल गोविंदहो || For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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