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जग - जीव - गवेसण - करण कुंढ
- कारिणि णरवरह (१) पदीह भूमीव भुवण - भोयण - रुसाढ कालायस - घडिय सुवण्ण-वण्ण
भइ जणद्दणु तो एक्कु ण-वि
जिज्जइ एह लउडि
जइ एव-मि पसिद्धि
एहु अज्जुण भरु सव्त्रो - वि मज्झु थिउ मुवि धम्म-संघाणु पत्थु हकारिउ वइरि तिविकमेण तो कोवे गएण गया उहेण किं किज्जइ अण्णे आहवेण उक्कमइ एहु जे कलह - मूल तो मुक्क गयासणि महुमहासु जीमुत्तें विज्जु व महिहरासु
हरि-वच्छ-त्थले णाई चडाविय
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णं काल - गइंदहो तणिय सुंढ णं विउल लटाविय जमेण जीह णं गलिय कयंतो तणिय दाढ
णं फुरिय - महामणि णाग- कण्ण
घत्ता
जइ पट्ठविय महा-गय | दुक्करु जावई धणंजय ॥
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(हेला)
उझिए पहरणं । तो काई जुज्झिएणं ॥
रिट्टणेमिचरिउ
थिउ कारणु भारिउ तउ असज्झु हउँ करमि उवाएं रिउ णिरत्थु लइ मेल्लि लउडि णिय-विकमेण परिचितिउ एउ सुआउहेण रु हिउ जे हिएं माहवेण फेडिज करव-पट्टसूल दहगीवें सत्ति व लक्खणासु हिमवंते गंग व सायरासु
घन्ता
पडिय नियंतही इंदहो । कमल - माल गोविंदहो ||
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