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________________ १७८ रिडणेमिचरिउ वंभाणु भाणु सम्भाणु जमु सहसक्खु तियक्खु-वि णिरु विसमु एय-वि अवर-हि रक्खंतु फुडु कइ-केयणु एक्कु म होउ छुडु चर-पुरिसेहि वइरि-विमद्दणहो णिय एह वत्त तव-णदणहो तेण-वि हक्कारेवि वुत्त णरु पई परए धरेवउ समर-भरु. ८ धत्ता वट्टइ गुरु सेणावइ जमु जिह पावइ सव्वहं पलउ करेसइ । . अज्जुण पई दूरत्थे समर-समत्थें जीव-गाहु मई लेसइ ॥ ९ [११] तो रएवि करंजलि पणय-सिरु कइ-केयणु पभणइ गहिर-गिरु जइ अंबरे दिणमणि उग्गमइ जइ जोइस-चक्कु ण परिभमइ जइ चलइ मेरु ण चलइ पवणु, रवि णिप्पहु णिद्धणु वइसवणु जइ सीयलु सिहि पज्जलइ जलु जइ एकहि महियल गयणयलु ४ जइ गिट्ठइ काल दइउ मरइ तो मई जियते गुरु पई धरइ जहिं जमल-विओयर पवर-भुय जहिं दोमइ-णंदण दुमय-सुय जहिं सच्चइ रण-भर-उज्वहणु सयमेव पासे जहिं महुमहणु सोमय-सिंजय-पंचाल जहिं आसंकहि णरवइ काई तहि ८ घत्ता सच्चु दोणु चउ-पत्थउ मवेवि समत्थउ जहिं रासिउ तहिं जुज्जइ । एहु तिहिं पत्थेहिं ऊणउ गण्ण-विहणउं तुम्हडं तेण ण पुज्जइ ॥९ [१२] सा केम-वि केम-वि गमिय गिसि ता अरुणालंकिय पुव्व-दिसि संजमियई विविहई वाहणई सण्णद्धई विण्णि-वि साहणई णिक्खोह भरिय रहे पहरण भुव-सोह-चडाविय वारण वाइत्तई चित्तई वज्जियइ णं जलहर-विदई गजियइ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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