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पण्णासमो संधि रण-रहसें कहि-मि ण माइयई जल-थलई णाई उद्धाइयई दोणे तो सयड-बूहु कियउ सुरवरह-मि दुप्परियल्लु थिउ त णिएवि जाउ भउ अज्जुणहो आएसु दिण्णु घट्ठज्जुणहो तो तेण-वि कंबु-वूहु रइड धय-दंड-संड-मडव-छइड
घत्ता
किय वूहई हय-तूर पगइए कूरई गंधवहुद्धय-चिंधई । जलहि-जलई णिमज्जायई xx भिडियई अग्गिम-खंधई ॥९.
[१३]
कण्णज्जुण्ण वूहाणणिहिथिय कुरु-पंडवे पक्खय पक्ख किय एक्कत्तहे एयारह गणित अणेत्तहे सत्तक्खोहणिउ एक्कत्तहे कउरव वहु-सयण अण्णेत्तहे पंडव पंच जण एक्कत्तहो चक्कर यणु पहणु 'अण्णेत्तहे अप्पुणु महुमहणु एक्कर्हि णिय-पुण्णई णिट्टियई अवरहिं सुणिमित्तई उट्टियई एक्कहिं वलंति सच्छाउहाई अवरहिं पुण्णई सव दुम्मुहाई एक्काहिं सिव असिवई आयरइ अवरहि जयसिरि पेसणु करई एक्कहि वयणई विच्छायाई अवरहि सुच्छायई जायाई ८
पत्ता जइ ण पडतु पियामहु सुरह-मि दुम्महु दारुणु करेवि महा-रणु । तो पंडव-कुरुरायह हरिस-विसायहं होतु ण एक्कु-वि कारणु ॥९
[१४] तो दुक्क महागय गयवरह णं सजल जलय णव-जलहरह तोरविय तुरंग तुरंगमहं णं पवर विहंग विहंगमह भड भडहं परोप्परु आवडिय णं गहेहिं महा-गह अभिडिय एक्वत्तहे वहुएहिं एक्क जणु वेढिज्जइ मेहेहिं जिह तवणु ४
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