________________
बासहिमो संधि
[१०]
(मात्रा) पलय-घंघलु दिण्ण-रण-तूरु । घण-घोस-समुद्द-रउ णारसीह-ओरालि-भीमणु । हर-हास-सहास-समु दस-दिसा-विसटुंत-णीसणु ॥
(मंजरी) सुरवरेहिं तो दुंदुहि दिण्ण णहंगणे ।
भिडिय पत्थ-दुज्जोहण वेवि रणंगणे ।। ते वे-वि पंडु-धयरट्ठ-सुय णग्गोह-रोह-पारोह-भुय सोवण्ण-पवंग-भुवंग-धय सुर-वहु-कडक्ख-विक्खेव-हय स-धणुद्धर दुद्धर दुव्विसह तुरमाण-तुरंगम-गमिय-रह मणि-कुंडल-मंडिय-गंडयल रण-रामालिंगिय-बच्छयल दोमइ-भाणुवइ-लद्ध पसर भुयइंद-भयंकर-भूरि-सर कंपाविय-सायर-स-घर-घर परिचिंतिउ मणे णारायणेण होएवउ केण-वि कारणेण कुरु कासु-वि वलेण परिप्फुरइ अवरेण पयारेण वित्तुरइ (?) तो माण-गइंदारोहणेण पच्चारिउ णरु दुजोहणेण
घत्ता देवेहि दिण्णइ जाई तउ लइ ताई पत्थ दिव्वत्थई । दुक्खई अणवेल्लियई जिह जा सव्वई करइ(? मि) णिरत्थई । १५
[११]
(मात्रा) तुहुं विहंदलि वे-वि वलयाइ रूवेण महिलामएण महिल-मज्झे-णच्चंतु सोहहि । गोवीहिं य विग्गोवियउ णंद-गोव-गोहणइ रक्खहि ।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org