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पंचचालीसमो संधि
दुण्णय-दुमहो फलई परिपक्कई होंति णियाण-काले लल्लक्कई गंगा-गंदणेण साहारिउ वहुवेहिं वहुय-बार विणिवारिउ ४ ण किउ क्यणु जिह कासु-वि केरउ तिहिं वलु चोयहि धरहि म सेरउ पंडव दुण्णिवार मई अक्खिउ . पई अण्णाणे कन्जु ण लक्खिउ एवहिं धीरु होहि वरि जुज्झहि दीणालावेहिं कह-मि ण सुज्झहि रण-धुर-धरेहि परिट्ठिउ जावेहि रिउ तिहिं मुहेहि पराइउ तावेहि ८
धत्ता तुरय-महा-रहेहिं णर-णरवइ-पवर-गई देहि । वेढिउ गंग-सुउ जिह दुमणि महा-घण-विदेहिं ॥ ९
[७]
जं तिहिं मुहेहिं पधाइउ पर वलु धरिउ पियामहेण तं णिच्चलु दोणु पधाइउ रणे दुप्पेच्छह सोमय-सिंजय-कइकय-मच्छह जउ जउ थरहरंतु रहु पावइ तउ तउ रत्त-तरंगिणि-धावइ कुंडल-मउड-महामणि-विमलई खुडइ खुरुप्पेहिं णर-सिर-कमलई ४ सर-किरणेहिं किरंतु परिसक्किउ . दोण-दिवायरु धरेवि ण सक्किउ तहिं अवसरे आरोसिय पंडव घाइय उद्ध-सुड वेयंड व ढुक्कु विओयरु मत्त-गइंदहं भिडिय णउल-सहएव तुरंगहं णर णरवइ गरेण विणिवारिय आहवे छिण्ण भिण्ण लय भारिय ८
घत्ता
णासइ कुरुव-बलु कुंजर-जू हु जिह
गर-सर-समूह संताविउ । हरि-णहर-पहर-कडुयाविउ ॥
[८]
सात चार व गा संरण किरद्वकालमत्सुविसुतांदण
थक्क चयारि-वि णरवर-संदण : किव-किववाम-सउणि-गुरु-गंदण .. तेहि-मि धीरिउ वलु णासंतउ .. भार-दुवारे. सरणु पइसंतउ..
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