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सत्ततीसमो संधि
४५.
दुवई
कुंडिण-गयर-राएण धणु-सहारण सहि सर विमुक्का ।
ते समुद्दविजइणा गुण-पराइणा सट्ठिहिं विलुक्का ।। रुप्पिणि-भायरेण सउ भल्लह पेसिउ वइरि-उर-त्थल-सल्लह छिण्ण सिवा-सुएण ते वाणेहि जिहं कसाय महरिसि-सुह-झाणेहिं रुप्पें पंच सयई पट्टवियइं ताइ-मि सिव-सुएण णिढवियई सिल-धुय-पुंख-परिट्ठिय-रुप्पह पेसियाई छ-सयाई खुरुप्पह णेमि-सहोयरेण रणे छिण्णई पवणे मेहउल-व विच्छिण्णई रुप्पें वाण-तर गिणि मुक्की ण मदाइणि थाणहो चुक्की स-वि सिवणदणेण धणु-धरणे पंति णिवारिय सरवर-वरणे धणु सण्णहणु छत्तु धउ चामरु सार हि रहु रहगु हरि कुव्वरु
घत्ता
सव्वइ छिदेवि ओसारिउ वम्मह-माउलु । विरहावत्थहे भणु को-व ण होइ विसंठुलु ॥ १०
[८]
दुवई पूरिउ चक्क-णेमिणा विजय-गामिणा जलयरो रउद्दो ।
णावइ णव-धणागमे गिंभ-निग्गभे गजिओ समुद्दो ॥ भिप्फहो णदणु वि-रहु णिएप्पिणु अण्णु-वि संख-सद्द णिसुणेप्पिणु महि-णिहि-रयणद्ध-मयंधे पेसिय णव गरिंद जरसंधे णं णव गह केत्तहिं वि ण संठिय ण णव णोकसाय विसमुट्ठिय १
पेसिय णवणार
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