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________________ ४४ रिट्ठणेमिचरिउ ८ एक्कु विणासु अवरु वय-खंडणु तुम्हह पुणु दुच्चरिउ जे मंडणु अहो सिवदेवि-समुद्दविजय-सुय पंच-जणह मिहे पढमेल्लय दिढरह-सुअ-महरिट्ठ-पयाइहि मिणाह-गहणुत्तर-भाइहिं चक्कणेमि तुडं जे? स-विक्कमु । पहरु पहरु जइ अत्थि परक्कमु णं तो हउं धणुवेउ पदरिसमि जलहरु जिह सर-धोरणि वरिसमि धत्ता एम भणेप्पिणु रणे रुप्पें रुप्पिम-वाणेहिं । विद्ध सिवा-सुउ परमप्पउ जिह परमाणुहिं ।। दुवई वंचिउ चक्कणेमिणा सिग्घ-गामिणा सो सरो विभुक्को । गुरुमिव धम्मवज्जिओ गउ अपुजिओ गुणि व मुक्खेण मुक्को ॥ हसिउ सिवासुउ धणु-वि ण वुज्झहि एण परक्कमेण तुहुँ जुज्झहि हउ खय-चक्कणेमि सो वुच्चमि रसमसकसमसंतु पई रुच्चमि फलु अणुहुजहि म अवराहहो अज्ज-वि पणवहि पंकय-णाहहो ४ णासिउ पाव-वुद्धि अप्पाणउ जायव-जणह मज्झे तुडं राणउ वम्भहु भाइणेउ सस रुप्पिणि भइणिवइड सउरि वहु वाहिणि तो आरुट्ठ सुउ भिप्फहो छण-पावणेहिं किविणु णं विप्पहो को किर णवइ गंद-गोवालहो । मेल्लेवि चरण पिहिवि-परिपालहो ८ एम भणेवि वीसद्धेहिं वाणेहिं विद्ध खयारुण-किरण-समाणेहि धत्ता जायव-वीरेण ते दस-सर दसहिं विह जिय । दसहि-मि धम्मेहि ण दस-वि अघम्म परज्जिय ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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