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सतत्तीसमो संघि
[४] दुवई
भीम-भुवंग-चिंधेणं वण-मयंधेणं णिच्च-णिक्किवेणं ।
हक्कारिउ धणंजओ पर-पुरजओ कुरु-णराहिवेण ॥ खल-खुद्दहो पिसुणहो दुवियड्ढहो मई विसु दिण्णु विओयर-संढहो मई लक्खाहरे लाइउ हुयवहु मई दाविउ दोमइ-केसग्गहु मई सविसेसु देसु छंडाविय तेरह करिसई दुक्खई पाविय ४ तं संभरेवि पहरु जइ सक्कहि काई अकारणे रणे परिसक्कहि एम भणेत्रि आभिट्टइ जावेहि भायर पुरउ परिट्ठिय तावेहि णरेण वुत्तु एत्तडेण ण मारिय तुम्हई भीमें थुत्थुक्कारिय एव पडुत्तरु देवि सवंतह
सरहसु साहणे भिडिय तिगत्तह ८ विधइ वलइ धाइ वि-यत्तइ णर-सिर-कमलई तोडेवि धत्तई
धत्ता एक धणंजउ जालंधर-सेफ्णु अणंतउं । णं सहुं कालेण थिउ जोइस-चक्कु भमंतउं ॥ १०
दुवई ताव वियब्भ-णाहेणं वल-सणाहेण सव्व-लोय-खेमी ।
रुप्पिणि-जेट्ठ-भाइणा हरि-अराइणा वुत्तु चक्कणेमी ।। जायव तुम्हेहिं अम्हेहिं खत्तिय विहि-मि कुलह वडुतरु पत्तिय कम्मई जाई णंद-गोवालह ताई ण होंति पिहिवि-परिपालह आसव-पाणई कण्णाहरणई उत्तम-पुरिसह मलिणीकरणई
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