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________________ १२ परिवेदिउ छहि-मि महा रहे हिं समरंगणे कण्णे छिष्णु गुणु जिह खग्ग-रहंगे जुज्झियउ दूसासण- पुत्तहो अबिभडिउ बहु सुहो सुणेवि णिवांडर सहसति मुच्छा-विहलंघल हूउ णरु 'तुडि-वडणे चेयण- भाउ गड गुण-संभरणेण विमुक्क रटि को समर - महाभर धुर धरइ साहारहि हई उम्माहयउ पर एक्कु - बि णवर ण चल्लियउ पूरंतु मणोरह तब सुयहो उ जाणइ वृहहो णिग्गमणु कुरु-णाहु ण रुण्णु तुहं रोवहि काई -सयरेण ण रुण्णउं कोंति - सुय भणु केण रुण्णु संगामे हय तव - सुग्रहो भग्ग जें माण-सिंह तं वयणु सुणेवि दामोयरहो Jain Education International जिह वालउ वालु महा-गएहिं अण्णेहि अण्णु णिट्ठविउ पुणु तहिं परिसंखाणु ण वुझियउ सम- चाहिं धरणि-पट्टे पडिउ रिट्टणेमिचरिउ घत्ता पडिमुच्छित गंडीव धरु | दुप्पवणक्खउ जेम तरु ॥ [७] अणहि धणु अण्णहि पडिउ सरु उहिउ यि सुय-सोयाहिह कहो अहो एही चारहडि भड थडड-कडमद्दणु को करइ सय-वार भीमु अप्पाहियउ एकल्लउ तुहुं मोक्कल्लियर आए दिष्णु जें महु सुयहो किं रुत्रहि णिवारइ महुमहणु घत्ता पुत्र- सयहो गुण-सुमरणेण । एक्कहो पुत्तहो कारणेण ॥ [८] जसु सट्ठि सहस णंदणहं सुय खर- दूसण चउद्दह सहस मय सो जियइ रुत्रहि तुहुं रंड जिह मुहु जोइउ जेट्ठ-सहोयरहो For Private & Personal Use Only ८ ४ ८ ९ ४ www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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