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परिवेदिउ छहि-मि महा रहे हिं समरंगणे कण्णे छिष्णु गुणु जिह खग्ग-रहंगे जुज्झियउ दूसासण- पुत्तहो अबिभडिउ
बहु सुहो सुणेवि णिवांडर सहसति
मुच्छा-विहलंघल हूउ णरु 'तुडि-वडणे चेयण- भाउ गड गुण-संभरणेण विमुक्क रटि को समर - महाभर धुर धरइ साहारहि हई उम्माहयउ पर एक्कु - बि णवर ण चल्लियउ पूरंतु मणोरह तब सुयहो उ जाणइ वृहहो णिग्गमणु
कुरु-णाहु ण रुण्णु तुहं रोवहि काई
-सयरेण ण रुण्णउं कोंति - सुय भणु केण रुण्णु संगामे हय तव - सुग्रहो भग्ग जें माण-सिंह तं वयणु सुणेवि दामोयरहो
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जिह वालउ वालु महा-गएहिं अण्णेहि अण्णु णिट्ठविउ पुणु तहिं परिसंखाणु ण वुझियउ
सम- चाहिं धरणि-पट्टे पडिउ
रिट्टणेमिचरिउ
घत्ता
पडिमुच्छित गंडीव धरु | दुप्पवणक्खउ जेम तरु ॥
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अणहि धणु अण्णहि पडिउ सरु उहिउ यि सुय-सोयाहिह कहो अहो एही चारहडि भड थडड-कडमद्दणु को करइ सय-वार भीमु अप्पाहियउ एकल्लउ तुहुं मोक्कल्लियर आए दिष्णु जें महु सुयहो किं रुत्रहि णिवारइ महुमहणु
घत्ता
पुत्र- सयहो गुण-सुमरणेण । एक्कहो पुत्तहो कारणेण ॥
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जसु सट्ठि सहस णंदणहं सुय खर- दूसण चउद्दह सहस मय
सो जियइ रुत्रहि तुहुं रंड जिह मुहु जोइउ जेट्ठ-सहोयरहो
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