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सत्तावण्णमो संधि उम्मत्तउ होवि मुहुत्तु थिउ धणु वाम-हत्थे सरु इयरे किउ अवगण्णेवि हरि-उक्कोइयइं पुणु मुहई णरिंदहं जोइयइ अहो अहो सुहि-संढहो णिग्गुणहो सच्चइ-सिहंडि-धज्जुणुहो एक्केण-वि वालु ण रक्खियउ तुम्हेहिं सव्वेहिं उपेक्खियउ
घत्ता थिय णिम्मुह होवि को जाणइ कहो धिवइ सरु । मं बोल्लउ को-वि मारइ पहिलीहूउ णरु ॥
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आतंकिय णरवइ णिहुय थिय आले हय लेपिम गाइ किय तो पर्थे भौमु णिहालियउ महुशंदणु पइ-मिण पालियउ सो वहुहिं णिहम्मइ एक्कु जणु तुहुं णिय-धरु एहि अलद्ध-वणु पच्चेडिउ जसु वलिड चिरु सो केम जयबहु थाकु थिरु तव-शंदणु कहइ महोयरहो णउ अज्जुण दोसु विओयरहो ते सेंधउ मा सामण्णु गणे धू पइ-मि परज्जइ आयणे एत्तडेण चुक्कु जोतु ण-वि जिह सोमय-सिंजय-कइकय-वि सर-धारे वरिलिउ मेहु जिह ते महु-वि भग्ग आहमाण-सिह
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नर आइय ताम चिंतणहं ण जाइ
घत्ता कहिउ कण्ह-तव-सुध-णरहं । जा बट्टइ अवस्थ परहं ।।
, अवथ पर ।।
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घरे घरे वणिज्जइ पत्थ-सुउ सउ मारिउ कुरुवइ-गंदणहं णत्र-सयई गइंदहं मत्ताहं पायालहं चउद्दह सहस मय
घरे घरे रुज्जइ जो को वि मुउ सहमठु णसुभिव्य संदणहं दस-सयई पहुहु पहरंताहं सहुँ विहवलेण दम सहस हय
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