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चउवण्णासमो संधि
भयवत्तेण
समरे समत्थेण ओसारिउजइ कुरुव-बलु । सर-सिह उ मुअंतेण दोमइ-कंतेण णं वडवग्गिए उवहि-जलु ।।
[१] हक्कारिउ विहि-मि समच्छरेहि गंधारिहे सउणि-सहोयरेहि जवणासोवाहिय-संदणेहि
अइ-सुवलेहि सुवलहो णंदणेहिं सामिय-सम्माण-रणुज्जएहिं . विसयावल-णामेहिं दुज्जएहिं वल कु-पुरिस पंडव संढ-भाव भयवत्तु वहेवि कहिं जाहिं पाव ४ दुव्वयण-सिलीमुह-विद्धएण सेयासे वेहाविद्रएण धवलायव-वारण रह-रहंग धय-धणुवर-सारहि-वर-तुर ग णिण्णासिय एक्कें अजुणेण बहु अवगुण णाई महा-गुणेण भज्जतहो विसउ व विसउ पत्तु रहे अवलहो थाएवि पडिणियत्त ८
घत्ता
सइ अगए किय-थाणेण
भायरु पच्छए । . ओलि णिवद्ध पधाइय । एक्के वाणेण विण्णि-वि पत्थे धाइय ॥ ९
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