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________________ १५८ दस सुद्धि व पविवेअ जासु रयण-तय-विणयावास सुद्धि वइणइय सपाणाहार-सुद्धि देहें दिय उवहि- कसाय- चाउ दवासिय भावासिय वित्रेय चडिएवी गुण-सोवाण-पंति जा सासय-पुरहो णिसेणिभूय जा गुण-संपत्ति परम-हेउ भाव - णिसेणि समारुहेवि जिह सङ्घ केण- विपत्थवेण भावणउ पंच भावेवि आउ गुणियाउहु राय - कुमारु जेम तव भावण भाविउ जसु सरीरु सुय भावण भाविउ देहु जासु जो सत्त भावणा- भावियंगु एकत्त-भावणा- भावियंगु दिहि भाव - भावियावयव जासु इय पंच भावणा भावियंगु तर अणसणु अवमोयरिउ काय - किलेस - समाण Jain Education International [१६] सल्लेहण काले समाहितासु संथारालोयण - उबहि-सुद्धि जसु जायठ तासु समाहि सिद्धि संथारासण-मोयण-विराउ सु करेत्रा मरण-मणे एय जहि उत्तम सत्त समारुहंति गय जाए महारिसि सुप्पय पर सिद्धेहि जाणिउ जाहे छेउ रिट्टणेमिचरिउ घत्ता संघाहित्रेण समउ वोलेवर | पढम थाणे जणे मोणु लएवउ || [१७] संकिट्टर पंच मुवि ताउ कज्ज-खमु महा-रिसि होइ तेम सण्णास-काले सो परम-धीरु तर दंसणु णाणु चरित्तु तासु उवसगे-त्रि तहो ण कयावि भंगु सो केण - इ सहुंण करेइ संगु स धराधर - धीरिम होइ तासु सल्लेहण - कालहो कोण जोग्गु धत्ता रस-परिचाउ वित्ति - परिमाणु । छवि हि सण्णास - विहाणु || For Private & Personal Use Only ४ ८ www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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