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________________ अट्टचालीसमो संधि ण समाहि अभवहु णरवरासु सो जइवरु जो अणियय-विहारि तरु-वाहिर-रयणत्तावणेहि थंडिलेहिं मसाणेहि गिरि गुहेहिं परभागम-लोयणु भमइ भिक्खु वसुम- पत्थर भुवोवहाण इह जम्मणु इह णिक्खमणु णाणु सद्दिट्टि दिटत्तण-भावणाउ आयई पंच महाफलई ज-विमणेण विभावियई हिरेपणु सव-दयावरेण दुप्पालाई परिपालियई वयइ सिद्धंत समुद्दहो दिट्ठ पारु मुह - कुहरे जाम उ खलड् वाय द कटिण जाम भुत्र-दंड बे-वि जावण्णग- वि भज्जइ जरए पुट्टि जावण्ण-वि गीवा - अंगु होइ दुभिक्ख- डमर-दुत्थई ण जाम पक्कई पंथ-महा- दुम-डालें । लहर महारिस विहरण- कालें || [१५] परिणाउ करेवर जइवरेण णिप्पण्णई सीस-पसीस-सयई वरि एवंहि मुयमि सरीर भारु थिर जाम जाणु - जंचोरु-पाय कर-मुइहो दितिजा कवलु लेवि पण लग्गइ मत्थए जाम दिट्ठि जावण्ण-वि विहडइ संधि को वि वरि भत पण करमि ताम धत्ता सुद्ध परिणाम करेउ । दु-बिहु परिगहु परिहरिएवउ || सल्लेहण-भावंतरण मुएवि कमंडलु पडिलिहणु Jain Education International [१४] सावयह होइ जिम जइवरासु अणुगामिउ (?) केवल - चरण-चारि पुर-यर- खेड - पट्टण-वणेहि कन्नड-मडंव-दोणामुहे हिं कउहंत्ररु पावरिअंतरिक्खु तिण-कणय- कोडि अरि- सुहि- समाणु णिव्वाण णिवाणइ वंदमाणु अच्छण्णु खेत्तु परिमग्गणाउ घत्ता • For Private & Personal Use Only १५७ ८ ९ www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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