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________________ १८२ रितुणेमिचरिउ [२] पहिलउ पाय-लग्गु रउ घावइ पंडव-कुरुव-णिवारउ णावइ अहो तव-सुय-दुज्जोहण-रायहो वुत्तउ किण्ण करहो महु आयहो काई अकारणे कलहु पउंजहो अद्धे' अदु वसुधर भुजहो म पहरहोणं घरइ कडच्छए सीस-बलग्गु होइ पुणु पच्छए. ४ ण गणइ वलइ रणंगणु छायइ रुट्ठउ जमहो णाई थाहावइ जो जो ढुक्कइ त त खाएत्रि ___हसइ व छत्त-धयम्गेहिं थाएवि भमइ व गयण-मग्गे णिव्वडियउ कासु ण उत्तमगे हउ चडिउ तहिं उग्गउ रयणियरु णिरतरु दंति-दत-णिहसग्गि अणतरु ८ घत्ता वहल-फुलिंगम्भ इयउ सहसुद्धइयउ जालालिउ भय-गारियउ । णहु बहु-भाएहि ठतिहिं कुरु-वलु खतिहिं जीहउ जमेण पसारियउ ॥९ [३] एम समुच्छलियउ सिहि-जालउ पुणु सोणिय-धारउ सुसरालउ तेहिं असेसु दिसा-मुहु सित्तउ. थिउ णहु णाई कुसुभए चित्त अवरउ परियत्तउ गयणग्गहो ण घुसिणोलिउ णह-सिरि-अंगहो जाय महारण-भूमि भयंकर सोणिय-पाणिय-पवह-णिरतर पसमिउ रउ उल्हविय-हुयासई उट्टयई रुहिर.णइ-सहासई रहवर-गयवरोह ण पहाविय तुरय तरंत तरंत वहाविय मिलियउ ताउ जाउ अइ-दुत्तरु पारावारु अपारु भयंकर हय-गय-णेर-णरिंद-कंकालिहिं णिविड-णिवद्ध-पालि-जवालहि घत्ता तहि तेहए रण सायरे चडेवि महागय-गत्तेहि णरवर-जलयरे रह-धय-छत्तेहिं सोणिय-हाण-कियायरई । झंपउ देंति णं सायरई॥९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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