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________________ पंचवण्यासयो सधि २४१ णिठ्ठविय सत्त-सत्तरि णरिंद हय सत्त महारह दस गइंद दूसासण-गंदणु ताम एक्कु गय-घाए चूरेवि एक्कमेक्कु विहलंधलु रुहिरालित्त-गत्त दोच्छिउ पत्थंगरहेण सत्तु घता चंपावइ फेणेण भाव तउ चारहडि विचित्त लिय । किं आयए छत्तहो छायए महु मुह-छाय जे अग्गलिय ॥ ९ (२८) रवि-सुएण सयमेव पराउ वर-कप्पूर-कर विउ पाणिउ ससहर-सत्थ हेण भिंगारे तं ण सगिच्छिउ पिएवि कुमार फुट्टउ जीह जाउ सय-सयकर सत्त-सलिलु किं कह-वि सुहंकरु जाहि पाव जइ पावइ अज्जुणु तो एवहिं जि होइ कण्णज्जुणु ४ उत्तम-पुरिसहो एउ ण लक्खणु अज्जु तुहारउ दिठ्ठ भडत्तणु दीणहो काणीणहो अकुलीणहो एउ कम्मु पर होइ णिहीणहो जीउ ण छिण्णु छिण्णु पई णिय-पगुणु विसहिउ केण स-माहउ फग्गुणु जइ मई समरे ण णिहउ सहत्थेतं किर तुहं मारेवउ पत्थे घत्ता ९ ।। पई आणिउ पियमि ण पाणिउ जं जइ-वि सुधर सीयलउ । एउ थोवउ अवरु पिएवउ सग्ग-महासरे मोक्वल्ड ।। __ [२९] सउहदेण एम चवंतएण सो सुमरिउ देउ मरंतरण जो सव्वह देवह अग्गलउ तइलोक्क-सिहरे जसु थावलउ में अट्ठ-वि कमई णिज्जियइं जें पंचेदियइ परज्जियई जं धरेवि महा-रिसि मोक्खु गय जसु तणए धम्मे थिय जीव-दय ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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