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________________ १५२ रिट्ठणेमिचरउ कुरु-पंडव-जायव-मागहेस सम्माणिय गरवइ गिरवसेस के-वि पिय-हिय-वयणासीस देवि कर-कमल-परिमरिसेण के-वि के-वि सिरेण के-वि महि-मंडलेण के-वि दाण-पवरिसेण विरलेण जं आयउ पुव्व-कमेण दव्वु तं दीणाणाहह दिण्णु सव्वु परिपूरिय पणइहिं परम तित्ति आहार-सरीरह किय गिवित्ति विहिं थूण-कण्णेहिं मग्गणेण उवहाणउ किजइ फरगुणेण तहिं अवसरे आय विसुद्ध-वंस वे हंस महा-रिसि परम-हंस अइ-घोर-वीर-तव-तत्त-देह परमेट्ठि-पाय-पंकय-दुरेह घत्ता जीव-दया-वर गयण-गइ वागीसर जर-मरण-वियारा । पज्जण्ण-विणिम्मियहि फलिह-सिलहे उवविट्ठ भडारा ॥ ९ पोमाइउ सरि-सुउ जइवरेहिं अच्चंत-मउय-महुरक्खरेहि पई मुएवि पियामह कवणु वीरु जगे अण्णहो कहो एवड्डु धीरु को सुएवि समत्थु (१) सर-सयणे को अच्छइ महिण छिवंतु गयणे तं वयणु सुणेविणु सच्च-संधु दुद्धर-वय-भर-धुर-दिण्ण-संधु णइ-णंदणु पभणइ सर-विदिण्णु मई एण सरीरें तउ ण चिण्णु गुरु-पंच-महावय-भरु ण वूदु अच्छिउ वामोहण-णियले छुटु इह-लोइउ एक्कु विसउ ण लडु कक्कडउ वणिय-णंदणिहि खद्ध लइ एवहिं तुम्ह पइटु सरणु संपज्जइ जेण समाहि-मरणु घत्ता पुशु वि पियामहु विण्णवइ मयरकेउ-सर-णियर-णिवास । चउ-विह-फल-संपत्तिकरि लइ आराहण कहहि. महारा. ॥२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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