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अचाटीसमो संधि
वेदेवि निगूढ-पय-जंगमेह
अरहट्ट-तुं णं अर-वरेहिं
सव्वंगिय- पसरिय-वेयणेण
कुरु पंडव वयण-विमद्दणेण
जइ ढुक्कई विणि-त्रि साहणाई
मुवि परोप्प करहो णेहु
जो मुउ सो मुउ किर कणु दोसु घट्टज्जुण-दोण म कलि करंतु तं णिसुणेवि सव्वेहिं पत्थि हिं कुरु-जायव-सोमय - सिंजएहिं पडवण्णु वयणु इ-णंदणासु एक तहे जायव णिरवसेस एक्कत हे पंड मिलिय सव्व
णं चंदणु रुद्र भुयंगमेहिं तं सो-जि निरंतरु सरवरेहिं
कह-कह-वि समागय- चेयणेण वोल्लात्रिय गंगा-णंदणेण
तो छंडहो पहरण - वाहणाई घोसहो अ-मारि परमत्थु हु
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धत्ता
जुज्झतह दस-वि दिवस गय तो-वि महाहउ णाहि समत्तु । हत्रण - पुज्ज-महिमई करहो को जाणइ किर जीविउक्त ॥ ९
णिएवि पियामदु सर-सयणे कुरु-कुल- लग्गण-खंभु गउ
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दुज्जोहण भीम मुअतु रो... कण्णज्जुण मच्छरु परिहरंतु पंचाल पंडु-मच्छाहिवेहिं अवरेहि-मि पवर- पुरं जएहि ओहत्थाणु (?) ढुक्कु पासु अण्णेत्त मांगह थिय असेस अण्णेत्त हे कउरव गलिय - गव
घत्ता
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वाह भर तणायण विद्दाणा । धाह मुवाविय सयल- विराणा ॥ ९
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