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________________ अट्टचालीसमो संधि सरेहिं णिरंतरु पूरियउ गंगा-गंदणु धरणि ण पावइ झत्ति पडतउ णहयलहो किरणेहिं धरिउ दिवायरु णावइ ॥१ [१] जं पडिउ पियामहु कुरुव-त्रीरु सायर-गंभीर गिरिंद-धीरु पलयग्गि-पयंग-समुग्ग-तेउ तं रहवर वाहेवि पवण-वेउ दूसासणु भीम-भएण ण? णं तक्खणे तक्खय-णाय-तट्ठ णं हरिणु-व हरिणाहिवहो चुक्कु णं गहवइ गह-मुह-गाह-मुक्कु कुरु-गुरुहे णिवेइय तेण वत्त लइ ताय पियामह-कह समत्त तं वयणु सुणेविणु भग्ग-घोणु ओणल्लु महारह सिहरे दोणु स-सरासण हत्थहो पडिय वाण परिरक्खिय मुच्छए कह-वि पाण किउ कम्मु सिहडिए रणे रउद्दउ रवि पाडिउ सोसहो णिउ समुद्दउ पल्लटिउ जगु मारिउ कयंतु लइ एवहिं चुक्कइ को जियतु ८ घत्ता वज-खंभे जहिं होंति घुण जहिं अमर-वि मारिय मति । वइरु करेवि सहुं पंडवेहि तहिं अम्हारिस काई कति ॥ ९ [२] पंडव-कुरु संगरु पय? तेत्थु संतणु सर-सयणे णिवण्णु जेत्थु जल-धारा-घोरणि-धरिय-देहु वरिसंतु णिहालिउ णाई मेहु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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