________________
अट्ठचालीसमो संधि
[६]
तो कहइ महारिसि णवेवि सिद्ध चउरंगाराहण फल-समिद्ध आराहण रयण-त्तय-विसुद्धि आराहउ अण्णु ण का-वि बुद्धि तव-दंसण-णाण-चरित्त-वग्गु सो आराहेवउ एक्कु लग्गु आराहण-लयहे समुज्जलाई सग्गापवग्ग-सोक्खइ फलाई सम्मत्त-चरित्ताराहणेण चउ-विह आराहण दु-विह तेण उवसमियइ खाइउ उहय-सिद्ध सम्मत्तु ति-विहु आगमेण सिट्ट जो तिण्णि-वि आराहेवि समत्थ सम्मत्ताराहण सा पसत्थ चारित्तु पाव-किरियहे णिवित्ति तव-दंसण-णाण-पहाण-वित्ति
धत्ता णाणु वि आराहिय वोहयरु तउ मलहरु णयण-णियत्ति चरणे पुणु आराहिएण आराहियई असेसई होति ।।
[७] चारित्तु णिरुज्जउ किं करेइ ससिवि'वु व णिप्पहु दिहि ण देह संतउ वि ण सक्कइ हणेवि कम्मु । णिदालस-भावें खवइ जम्मु आराहण-विहिं पावइ ण जेट्ट चारित्ते करेवी तेण चिट्ठ सोहइ चरित्तु जिह उज्जमेण तव-चरणु तेम सहुं संजमेण ४ संजम-परिहीणहो तउ णिरत्थु उण्हालए महिहर-मत्थुयत्थु तरु-मूले घणागमे जोगु लेउ सीयालए वाहिर-सयणु देउ भक्खउ रवि-किरणई पियउ वाउ उभिय-भुय एकंगुढे थाउ पंचरिंग णिसेबउ खबउ देहु अण्णाण-किलेसु असेसु एहु ८
घत्ता
संजम-विरहिउ तव-चरणु साह ण देह जइ-वि बहु-माणउं । करि जिह पहाएवि विमल-जले धूलिए पडिलिपइ अप्पाणउं ॥
२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org