________________
रिटणेमिचरित
जज्जरियउ जरए सरीरु खवइ जिउ अहिणव-देहे संचरइ लगभइ अण्णण्ण भवंतरइ' । रवि-उवयस्थवणइ जेत्ति यई
विसहरु कंचुवउ जेम मुवइ णडु जिह अण्णण्ण वेस करइ जिह पयहिं पयहिं गामंतरइ जगे जम्मण-मरणइ तेत्तियई
८
जीवहो णिलउ ण णावइ गउ जम्म-सयहो उ आवइ ।। जसु दरिसणु जेण ण जुज्जइ तहो काई जुहिट्ठिल रुज्जइ ॥
९
अइ-दूसह-दुक्ख-परंपरह चउरासी-लक्ख-भवंतरह भवे भवे एक्केक्क-वार-हुयहूं चउरासी लक्ख तो-वि मुयहं केत्तियहं करेसहि परम-दुहु कोत्तयह रुवेहि राय तुहुं केत्तियइ गणेसहि सज्जण अद्भुवइ असारइ असरण अद्भुवई घण्ण-धण-जोव्वणइ । अद्भुवई रयण-मणि-कंचणई अद्भुवई छत्त-धय-चामरइ ण सरीरइ काहं-वि थावरइ आहंडल-लक्खइ णिवडियइ वंमाण-सहासइ विवडियइ सव्वहो उप्पत्ति जरा मरणु सवहो ण को-वि अब्भुद्धरणु
८
घत्ता सव्वु जीउ एक्कल्लउ रइ बंधइ अण्णहं भल्लउ । स-किय-फलई अणुहुंजइ तहुं काई णराहिव रुज्जइ ।।
[८]
पंचमिय महा-गइ-गमण-मणु
आसव-संवर-णिज्जर-रहिउ तणु-मेत्तउ सुहुमु समुद्ध-गइ पुत्वज्जिय कम्म-बंध लहइ
तइलोक-णिवासिउ असुह-तणु वर-धम्म-वोहि-अपरिग्गहिउ धुउ कत्तउ भुत्तउ णाणवइ पुणु गमावत्थ समुव्वहइ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org