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छप्पण्णमो संधि कत्थइ स-भुयई भइ-सा-सयाइ णं थियई सगालइ पंकयाइ कथइ पडियई ध-चिंधाई कथइ णच्चियइ कबंधाई काथ-वि लिव भडहो समावडिय णं दोसइ कामिणि उरे चडिय कत्थइ वेयालहं कलकगउं सिरु तुझु कबंधु महुतणउं
घत्ता विठु वालु सर-भरिउ णं जलहर-धारिहिं धरिउ । दीहर-णिद्दए भुत्तउ जगु गिलेवि णाई जमु सुत्तउ ॥
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तं गिएकि राहिउ मुच्छ गउ णं णिवडिउ गिरि कुलिसाहिहउ कह-कह-वि गरिंदेहिं उट्ठविउ ____णं मंदरु सुरेहिं परिद्वविउ हा पुत्त सुहदहे देहि दिहि पइणितु ण णि? अणिठु विहि महु एक्कसि दावहि मुह-कमलु धीरवहि रुवंतउ पंडु-वलु तउ अंगई सुठु सु-कोमलइ धर धरेवि किण्ण गय सय-दलइ हय रण-बहु पइ-मि ण जोइयउ सुरवहुहुँ सहत्थे ढोइयउ तुहुं महियले एक्कु पुत्तु णरहो पइबिणु ण धुरंधरु रण-भरहो पई जणिउ दुक्खु सव्वहो जयहो किं जीवइ अन्जु धणंजयहो
घत्ता राए रुते स-वाहणे सो को-वि ण पंडव-साहणे । सय-सय बार कुरुक्किय धाडिय जेण णउ मुक्किय ।।
[६] गय एम रुवंतहो ताम णिसि तहिं अबसरे णारउ देव-रिसि कत्थहों-वि परायउ सिग्घ-गइ संवोहिउ तेण णराहिवा किं स्वहि जेम सामण्णु णरु कहो परियणु पुत् कलत्तु घरु कहो धणु हिरण्णु कहो तणउ धणु कहो तणिय पिहिवि कहो तणउ रणु ४
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