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छप्पण्णमो संधि
उप्पज्जइ वाल-कील करइ सोलह संवच्छर परिहरइ दिवसेहिं जुवाण-भावे चडइ जर दुक्कइ णिहणु समावडइ जो जीव-सरीर-विओय-खणु समयंतरालु तं किर मरणु
घत्ता जोवेइ जोउ ते वुच्चइ जइ सव्वावत्थेहिं मुच्चइ । तो सिद्धत्त णुपावइ एव-मि णरु एहउ भावइ ।।
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तं णिसुणेवि धम्म-पुत्त चवइ जइ जीवहो मरणु ण संभवइ तो तिहुवणु को उवसंघरइ हतारु कवणु जोविउ हरइ णउ चुक्कइ को-वि अखंडियउ णउ सु-कइ कु-कइ णउ पंडियउ णउ तबसि ण विप्पु ण वाणियउ गउ खत्तिउ जो जगि जाणियउ ४ ण थणद्धउ ण-वि जुवाणु हडउ सव्वह-मि एक्कु सो दियहडउ तो भिसिय-कमंडल-धारएण आढत्तु कहतरु णारएण जइयर्ल्ड सिट्ठारे सिज्जि पय णिकखोभ-करेवि जगे विद्धि सय उपाइय तइयहु तेण तिय | णामेण मिच्चु खय-काल-किय ८ कसणंगिणि तंविर-लोयणिय रत्तंवर-धर फुरियाणिय दंडाउह-पाणि समुट्ठविय लहु दाहिण दिसए परिट्ठषिय तहे पडिबलु दुद्दमु देह-दमु स-कसाउ स-वाहि कियंतु जमु
घत्तो तेहि-मि णि म्मउ मरणउ तिहुवण-उवसंघरणउं । एकहो विहिं तिहिं दुक्कइ संधाए को-वि ण चुक्कइ ॥ १२
[१०] अवरेकह सासण-पावण-वि कालेण पडंति सुरासुर-वि कालेण विणासु पुरंदरहो कालेण सोसु रयणायरहो
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