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सत्ततीसमो संधि
सल्लें समत्तए रह-तुरय-महागय-वाहणु । तूरई देप्पिणु घाइउ जरसंघहो साहणु ॥१
[१]
दुवई दुहम-देह-दारणं विविइ-पहरणं विविह-धय-समूह । चहलुच्छलिय-कलयलं धाइयं वलं रइय-चक्क-बूहं ॥
समुद्दाणुमाणं धुणी-चुम्ममाणं पमाण-प्पहीणं फुरंतासि-मीणं फरोहार-सार अणं(?)-सुसुवार दडी-ददुरोह हयावत्त-सोह विमाणोवसेलं करेणुद्ध-वेलं दिसालिंगियंगं पडाया-तरंग धरद्धारहेणं(?) सियं-छत्त-फेणं सया गज्जमाणं सिरी-संणिहाणं
घत्ता
वूहु रएप्पिणु तं चाउरंग-वलु घाइउ । जगहो कियंतेण णं काल-चक्कु उप्पाइउ ॥ १०
[२]
दुवई काल-वलाहं अवरो हल-भयंकरो धय-णिहित्त-तालो । सुर-करि-कर-महा-भुओ रोहिणी-सुओ भणइ कामपालो ॥ अहो अहो अहो दुद्दम दणु-मद्दण चक्क-वूहु दुन्भेउ जणदण आयहो को-वि जियंतु ण छुट्टइ तिहिं आएसु देहि में फिट्टइ अज्जुणु चक्कणेमि सेणावइ आयह तणिय लीह को पावइ ४
२.३ ज. फुट्टइ.
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