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छत्तीसमो संधि
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घत्ता दिज्जइ धणु भग्गंताहं पहरंतहं रणे पहरिज्जइ । विण्णि-वि सलग्घई खत्तियहं विहिं अवरेहि पुणु लज्जिज्जइ ॥ ९
[१५] लज्जिज्जइ देवहं दाणवह विज्जाहर-किण्णर-माणवह लज्जिज्जइ सिंजय-पउरवह लज्जिज्जइ पंडव-कउरवह लज्जिज्जइ वल-णारायणहं लज्जिज्जइ सव्वह सज्जणह लज्जिज्जइ रुप्पिहो रुप्पिणिहे लज्जिज्जइ मागह-वाहिणिहे लज्जिज्जइ पंचहं भूयह-मि मरिएवउ विमुहीभूयह-मि जइ एम्ब-वि एम्ब-वि धुउ मरणु तो वरि चंगारउ वावरणु णासिज्जइ मेल्लेवि सुहड-किय जइ जावज्जीविउ अचल सिय ण गणिज्जइ तो संगाम-गइ माणुसु अजरामरु होइ जइ
धत्ता एण सरीरें चचलेण जइ सासय कित्ति विढप्पइ । तो पेक्खंतह सुरवरह किह सारहि रणु ण विढप्पइ ॥ ९
[१६] तं णिसुणेवि सूउ पलज्जियउ रहु वाहिउ भय-परिवज्जियउ णं सरह सरह समावडिय मयरद्धय-सल्ल वे-वि भिडिय विण्णि-वि विज्जाहर गयण-गइ विष्णि-वि जय-सिरि-गहणेक्क-मइ विणि-वि अवहत्थिय-भय-पसरविष्णि-वि स-सरासण स-सर-कर ४ विण्णि-वि सुर-भवणुच्छलिय-जस विहि-वि संगोम-मुहेक्क-रस विष्णि-वि जिण-चरण-कमल-भसल विण्णि-वि वावरण-करण-कुसल जग-सल्ले सल्लहो सल्ल-धरु वभत्थें छिण्णु दइच्च-सरु अवरेहि अवर सर कप्परिय तेण-वि तहो तुरय कडंतरिय
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