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________________ पंचचालीसमो संधि वीस-सयई उप्पाएवि वाहह णिरुवम-हेमाहरण-सणाहहं जुझिय जाम जाय समसुत्ती रत्त-तरंगिणि तहिं जि णिउत्ती सिक्किणि परि लिहति अवरोप्पर भिडिय वे-वि रणु जाउ भयंकर णाइणि-णंदणेण धणु ताडिउ वइवस-महिस-सिंगु णं पाडिउ जाउहाणु उप्पइउ णहगणे मायत्थई मेल्लंतु रणंगणे छिण्णई णर-सुरण लहु लक्खें वहुरूविणि परिचिंतिय रक्खें घत्ता रावण-विक्कमेण वहुरूविणि-विज्जावंतें । वहु-रूवइं कियई णं णडेण रंगे पइसंतें ॥ [११] दस सउ सहसु लक्खु उप्पज्जइ रिउ-रूवह परिमाणु ण णज्जइ तहो पडिमाय रइय इरवं ते णाग-पासि णिम्मविय तुरते पेसिय सव्व-लोय-पलयंकर फुरिय-फणा-फुक्कार-भयंकर कालिय-कालदट्ठ-वइरोडय तस्वय-संखचूड-कक्कोडय संखपाल-धयरट्ठ-धणंजय आसीविस-दिट्ठीविस-दुज्जय तेहिं णिसायर-घणु खज्जंतउ तमु णडु भयवे-विर-गत्तउ झत्ति अलंबुसेण उप्पाइय भीसण गारुड-विज्ज पचाइय अहि खायणह लग सव्वत्तेहिं गाय ण णाय आय गय केत्तहिं पत्ता ताम णिसायरेण सिरु पाडिउ इरवंतहो । णिवह णियंताहं पेसिउ पाहुणउ कयंतहो ॥ [१२] तं भीसावणे भड-कडवंदणे हए इरवंते घणंजय-गंदणे भेल्लिउ पंडव-सेण्णु अजेयहं आरिससिगि-दोण-गंगेयह ८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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