________________
तेसहिमो संधि
कुरुव-णराहिवे भग्गए गंडीव-ललोविय-जीहेण । दिछु जयदह-हरिणउ रण-कारणे अन्जुण-सीहेण ॥ १
[१]
(दुवई) णिय-गब्भरूव-विओइयउ करि-व जूह-विच्छोइयउ ।
पडिगय-वह-लालस-मणउ भमइ भग्ग-तरु वारणउ ॥ १ जर-णरायणाहिं पइसंतेहिं रह-चक्क-चिक्कारु करतेहिं फुरहुरंत-तुरमाण-तुरंगेहि चिंध-बलगगह गरुड-पवंगेहि णिय-कंवुव-वर-धणु-टंकारेहि वहिरिउ सयलु भुअणु फुक्कारे हि पहु-सम्माण-दाण-रिण-घत्था रिक्ख-समप्पह पहरण-हत्था ४ रहसुद्धाइय अट्ठ महारह भूरीसव-किव-कण-जयदह सल-विससेण-सल्ल-गुरुणंदण गिरिवर-गरुओवाहिय-संदण अज्जुण थाहि थाहि कहिं गम्मइ एवहि समर-महापिडु रम्मइ ८ । जिह भुव-दंड भिण्ण कुरु-रायहो तिह उरु ओड्डहि सर-संधायहो
पत्ता देवि महारण-तूरह अट्ठहि-मि करेप्पिणु करयलु । वेढिउ खंडव-डामरु णं दिस-गयवरेहि महि-मंडलु ॥१०.
[२] (दुवई)
उज्जोइय-समवरउ । तवइ धणंजय-दिणयरउ ।
विडाविय-रिउ-जलहरउ सर-किरणोह-भयंकरउ
रि-५
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org