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________________ १.४ जो रक्खइ हिंस हो होइ गरिंद धत्ता मुह- गुज्झयरहिं चरण किय आण - वडिच्छिय मोक्ख - सिय ॥ विरुयारउ सन्वहं पुट्ठि मंसु जो णवि छिप्पइ छम्मत्थेर्ण धम्म-विणासु हवइ गुरु-जिंदणे पाउ महंतु दित वारंतहुँ गो-वंभण- रिसि वज्झ करंतहुं पइवय-देव-भोय- फेडत हुँ पावहि पाउ पडइ तिहि दिवसेहि जेम जेम जम- जीउ पवज्जइ Jain Education International जे देव मुवंति ते किमि-कुले जंति [ ७ ] वरि घाइ (य) उ साहु णउ हासिंउ वरि ण न्यविउ विरुध्दु ण वि भासिउ दमिणु दुरुग्गमेण जं जायउ वरि विस-तरु-मंजरि अग्घाई वरि त कियर ण पच्छए खंडिउ वरि पसाउ ण कियउ ण उहडियउ वरि भंडणू ण कियउ ण-वि भग्गउ वरि णउ कीय सेय ण दु-पालिय रिट्टणेमिचरिउ होइ अणेयहुं दुक्खटुं गारउ पायछित्त निद्धम्म- कहेणं जम्मु णिरत्थु जिणिंद-अ-नंदणे गब्भिणियाहं गब्भु पाडत हुं तीमइ-वाल- विद्ध-णासहु पडिमा चोरी - पडिमा - खंत हुं अहव ति पक्ख-ति-मास-ति-वरिसेहि तइरणं सकुलेणुष्पज्जइ घन्ता लेप्पिणु पंच- महव्वयई । वरिसहूं सट्ठि-सहासयई || [ ८ ] वरिंणउ कियउ घ विष्णासिङ मरणु अणत्थु निंद जसु पासिउ वरि ण दिष्णु तं दाणु पराइउ ण - विं सेविय पुष्णालि पराई वरि भरु लयउ अणंतरे छंडिउ वरि णारूदु ण रुक्खहो पडियउ वरि जिणवरे ण लग्गु ण दुलग्गउ वरि दुणि- लित्त कम ण पक्खवालिय For Private & Personal Use Only ४ ८ ४ ८ www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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