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________________ १८४ रितुणेमिचरिउ मद्दाहिवेण णउल हक्कारिउ वि-कवउ वि-धणु वि-रहु विणिवारिउ गउतमु घट्टकेउ दप्पुदुर विणि.वि भिडिय णाई सुर-सिंधुर किउ सत्तरिहि विद्ध वच्छत्थले पाडिउ छत्तु सरेहिं तिहिं मत्थले अण्णेत्तहे विप्फारिय-धम्मह जाउ जुज्झु सच्चइ-कियवम्मह ४ अण्णेत्तहे सिहंडि-भूरीसत्र मिडिय णाई दसकंधर-वासव चेयणाइ-अणुविंदण्णेत्तहे अण्णेत्तहे विराड-चंपावइ अण्णेत्त है हइडिं वालंवुस उद्ध-सुड दिक्करि व गिरं कुस अण्णेत्तहे सुसम्म-सुसहावई लक्खण-वत्तएव अण्णेत्तहि ८ घत्ता एम परोप्परु जुज्झई कियई अउज्झई छिम-छत्त-धय-चामरई। हय-सारहि-रह-तुर यई कप्पिय-कवयई तोसाविय-सवामरइं ॥९ तो सक्कंदण-णंदण-णदणु पवर-तुरंगोवाहिय-संदणु भिडिउ समच्छरु पउरव रायहो ण दवग्गि तिण-वेणु-णिहायहो जाउ जुज्झु परिवड्डिय-मण्णुहु विहिं तेणहिं ?) मण्णु-अहिमण्णुहुं विग्णि-वि वावर ति रणे वाणेहिं विणिवि छाइय अमर विमणेहिं ४ विण्णि-वि पडव-कउरव-पक्स्वि विण्णि-वि सुर-सुदरिहिं कडस्विय विणि-वि अच्छरच्छि-विच्छोहेहि सुललिय-धवलिय-धवल-जसोहेहि विहि-भि पयंड-रवेहिं जगु वहिरिउ विहि-मि स-साहुक्कारउ पहरिउ विहिमि- सरेहिं सण्णाहु जज्जरियउ थणई वसुधर-तणु ण वरियउ ८ घत्ता णर-सुय-पउरव-राएहिं जलु थलु विवरु दिय तरु वर-णाराएहिं छाइउ गहु अंतरिउ रवि । जाउ दुसंचरु दिवसु ण णावइ रयणि णवि ॥९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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