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________________ २२२ रिठ्ठणेमिचरित मोक्कल्लिउ धम्माणंदणेण णं कुलिस-दडु सक्क दणेण पय-रक्ख करेविणु के-वि के-वि अप्पुणु-वि चलिउ आसीस देवि परिवढिउ वलु जसवंतु होहि विद्धंसहि दुद्धर वर विरोहि जय ताय भणेवि पयट्ट वालु णं कउरव-रायहो पलय-कालु ४ ण णिहालिउ जिह तव-णंदणेण उद्धाइउ एक्के संदोण गुरु-गंधवहु य-धयवडेण णाणाविह-पहरण-स'कडेण खर-खुर-खय-खोणि-तुरंगमेण तडयड-तुत-भुयंगमेण डोल्लाविय-समहि-महीहरेण . जव-झाल-झलाविय-सायरेण घत्ता ओधाविय झत्ति चडाविय चाव-लट्ठि णिय-कर यलेण । णं खुद्दहुं कुरुहुँ रउद्दहु वंक भह किय कालेण ॥ ९ गउ पयई वीस किउ संपहारु णं वरिसइ घणु अणवर य-धारु णं पलय-पहायर किरण-घोरु णं धुय-केसर केसरि-वि सोरु दीहर-णाराएहि लइय जोह स-तुरंगम रहवर गयवरोह साहारुण वधइ चक्क-वूहु णं रुद्ध मइंदें हरिण-जूहु त णिएवि जणद्दण-भाइणेउ पहरंतु रणंगणे अप्पमेउ णिय-मणे परिओसिउ कलसइंधु ण णव-चंदुग्गमे लवणसिंधु णिय-गंदणु णिदिउ वलेवि दोणि तुम्हारेसु पइसइ किण्ण खाणि सिविखज्जइ धणु ता एण जेवं तोसाविय रण-मुहे जेण देव २ण ८ घत्ता सरु लेप्पिणु जिमु ओसरु कालापण ताय णवेप्पिणु गुरु पच्चारिउ वालेण । जिम्व रणे उत्थरु सुमरिउ जुय-खय-कालेण ॥ ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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