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________________ ८२ रिट्ठणेमिचरिउ तहिं वग्गं ते दारुणे संगरे लहु अहिवण्णु परिहिउ अंतरे तिहिं मग्गणेहिं विद्ध मद्दाहिउ ताव पधाइउ कुरुव-णराहिउ दूसासण-समाण दस राणा सल्लहो रक्ख करेवि पहाणा अंतरे पइसारिय दस मलहर सर-धारेहि वरिसंत-व जलहर ८ ताम विओयरेण ते रुद्धा सीहे हरिण-व संसए छुद्धा घत्ता णर-णंदणु पुठिहिं करेवि भिडिउ भीमु दसह-मि सामंतह । णावइ मज्झे परिभमइ मंदर स्वीर-समुदावत्तह ।। १० [] तिहिं दूसासणेण तहिं अवसरे दुज्जोहणेण चउहिं थणंतरे हउ दुमुहेण णवहिं णाराएहि पलय-जलण-जाला-राच्छाएहि ताण-वि तेण वाण णीसेसिय पंचवीस एक्केक्कहो पेसिय जमलेहिं ताम सल्लु आढत्तउ णं विहिं करेहिं महाकरि मत्तउ ४ लउडि-करहं एत्तहे-वि सुधीमहं रणु पारंभिउ कुरुवइ-भीमहं तो जरसंधे कोव-पलित्ते दुज्जोहण-परिरक्ख-णिमित्तें मागहु णाम णराहिउ चोइउ जमेण पयंडु दंडु णं ढोइड धत्ता सत्तहिं सरहिं णराहिवेहिं मत्त-गइंदेहि, दसहि सहासेहिं । धाइउ पाउसु कालु जिह भीमहो उत्थरंतु चउ-पासेहिं ॥ ८ [८] वलिउ विओयरु मत्त-गइंदहं णं खय-मारुउ जलहर-विंदहं णं संकंदणु गिरि-संधायहं खगवइ आसीविस-णायहं के-वि गयासणि घाएहिं घाइय के-वि अण्णण्ण-पहेण पघाइय . .. के-वि कयंत-महापुरे पाविय के-वि विहंगम जिह उडडाविय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001428
Book TitleRitthnemichariyam Part 3 1
Original Sutra AuthorSwayambhudev
AuthorRamnish Tomar, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1996
Total Pages328
LanguagePrakrit, Apabhransh
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size13 MB
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