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छायालीसमो संघि
१३३ वल्हउ सत्तरिहि विओयरेण सारहि स-तुरंगमु णिहउ तेण तिहि चित्तसेणु फग्गुणेण विद्ध सउहदे दुम्मुहु रणे णिसिद्ध ४ कलसद्धएण सर-दाणु दिण्णु दोमइ-जणेर-जोतारु भिण्णु सच्चइहे ताम गंगा-सुएण आमेल्लिय सत्ति महा-भुएण वंचेप्पिणु जिह खय-काल-रत्ति सिणि-सुएण विसज्जिय अवर सत्ति विणिवारिय णवहिं पियामहेण थिउ तव-सुउ मज्झे महा-रहेण
धत्ता
कुरु-पंडु-वलहं जुझंताहं आहउ खणु-वि ण णिट्ठिगउ । मज्झत्थु होवि णं गयणयले पेखिउ अरुणु परिट्ठियउ ॥
दूसासणु ताम मणोगमाहं धाइउ लक्खेण तुरंगमाहं दस सहस अवर दुज्जोहणेण पेसिय परिरक्खण-कारणेण हरि-खुरहिं समुट्ठिउ रय-णिहाउ संगामु परोप्पर घोरु जाउ हय-साहणु जमल-जुहिट्ठिलेहि विद्ध सिउ तिहि-मि महा-वलेहिं ४ आसंकिउ कुरुवइ णिय-मणेण पट्ठिविउ सल्लु सहुँ साहेणण पडिलग्गु स-मच्छरु तिहि-मि ताहं मद्देय-मुयंगे-महा-घयाहं . पंचहि जमलेहिं वाणेहिं विद्ध. तव-सुरण दसहि वाणेहि णिसिद्ध तेण-वि ते रवि-किरणायवेहि हय तिण्णि-वि तिहि तिहिं सायरहिं ८
घत्ता
गंगेए ताम विरुद्धएण धणु विप्फारेवि धुणेवि कर । . घउजुण-भीम-जुहिट्ठिलाह वारह बारह मुक्क सर ॥
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