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जुज्झ-कंडं तेत्तीसमो संधि *
मगहापुर-परमेसरु पुच्छइ गणहरु कुरुव-कंडु गउ खेमेहिं । पंच-महावय-धारा मयण-वियारा जुज्झ-कंडु कहि एवहिं ।।१
[१] परमेसरु अक्खइ सेणियहो सम्मत्त-लद्धि-अक्खोणियहो सुणु मुह-मज्झत्त (?) वहंतरहो जउहरेहिं पराजउ जह परहो गय पंडव दारावइहे थिय गोविंदे सुहि-पडिवत्ति किय दिवसावसाणे णिसि-आगमणे सु-मण हरि-रुप्पिणि-वर-भवणे ४ वीभच्छु कहइ दामोयरहो कुडिलत्तणु कुरु-परमेसरहो दोवइ-केस-गहु वण-वसणु कि मीर-सरीर-वीर-महणु तव-तालुय-णीय-जीय-हरणु दुज्जोहण-बंदि-मोक्ख-करणु कीया-विणिवायणु गो-गहणु अहिवण्णुत्तर-पाणिग्गहणु
तं तुम्ह-पसाएं सव्वु हरि पंडवहं तरंडउं होहि वरि * The following four verses are found in J. at the end of the Kuru-kanda :
सव्वे-वि सुया पंजर-सुयव्व पढिअक्खराइं सिक्खंति । कइरायस्स सुओ पुणु, सुओव्व सुइ-गब्भ-स भूओ ॥१ होसंति पिय-सुहिय-माणुसाइं मिलि-त्ति जुवइ-संधाया । सामग्गि तुम्ह सरिसा पुण्णेहिं विणा ण संपडइ ।।२ अरि भमर भसलई दिदिर छप्पय रे दुरेह भणिओ सि मालइ समं च कुसुम पुणो-वि जइ मालइ-च्चेव ।।३ अस्ति का तस्करी राजन् राष्ट्रे त्वद्-भुज-पालिते ।
आदायादाय मे मांस प्रीणयत्यात्मनस्तनौ ॥४ 1.2 समारणु 9.a, वयणे किं
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