________________
चतालीसमो संधि
१०७
खगवइ-व भुयंग-कुलई गसइ राहु-व दिणयर-किरणई असइ रवि-संदण-सण्णिह-संदणेण हय खग्ग-लट्ठि गुरु-णंदणेण अण्णेत्तहे चम्म-रयणु तडिउ णं चंद-विंदु महियले पडिउ पासाय-सम-प्पहे सु-प्पवहे सिणि-सुरण चडाविउ णियय-रहे तहिं तेहए काले समावडिउ सच्चइहे अलंवुसु अभिडिउ मायत्थई मेल्लेवि जायवहो णिसियरेण सरासणु छिण्णु तहो ८
घत्ता रयणीयर-माय हुत्थि (?) हय पउरंदरेण । उपयंते णाई णिसि णिविय दिवायरेण ।।
जं सच्चइ जिणेवि ण सक्कियउ तं जाउहाणु आसंकियउ णिय-पाण लएविणु कहि-मि गउ णं केसरि णहर-पहर-हयउ तहिं काले मणोरम-रेह चडिय दुज्जोहण-धद्वज्जुण भिडिय ते सटि-पिसक्केहिं दुमय-सुउ । उरे ताडिउ कह-व ण कह-व मुउ ४ परिचेयण लहेवि कमल-करहो धणु पाडिउ कुरु-परमेसरहो घउ छिण्णु फणिंद-अलंकरिउ मणि-मोर-पडाया-परियरिउ हय हयवर सारहि विद्दविउ पहु सत्तहिं सरेहिं अहिद्दविउ असिवर-फर-करयलु घाइयउ तहिं अवसरे सउणि पराइयउ ८
धत्ता __ रहु ढोइउ तेण ते-वि चडेप्पिणु कहि-मि गय ।
णं चंदाइच्च गह-मुह-मेल्लिय गीढ-भय ॥ ९
दुज्जोहणे गए अमरिसे चडिउ कियवम्मु विओयरे अभिडिउ णं मत्त महा-गए मत्त गउ अवरोप्परु विहि-मि सरेहिं हउ
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org