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पंचघण्णासमो संधि
तमंधयार-णासो रविंद-दित्ति-तासको करिंद-कुंभ-दारुणो तुरंग-भंग-कारणो णरिंद-दप्प-साङको रिवूह-संग. झाडणो फरो करम्मि अण्णए सिहामणि-व्व पण्णए
१२ घत्ता चलु वालउ रणे असरालउ उप्परि णिवडिउ कुरु-णरहो । जल-दुग्गमे णव-मेहागमे विज्जु-पुजु जिह महिहरहो ॥ १३
[२४] णिवडतु कुमारु स-खग-वम्मु हउ सव्वेहिं मेल्लेवि खत्त-धम्मु पहरंतु दलंतु महा-गइंद भंजंतु असेस-त्रि परवरिंद मोड'तु दंडु तोडंतु धयई वे-भाय करतु तुरंग-सयई परिसक्कइ थक्कइ वलइ धाइ सो को-वि ण जो तहो समुहु थाइ ४ हय दोणे मुट्ठि-महा-सरेण फरु चंपापुर-परमेसरेण रवि-तणयायरिएहिं मुएवि खत्तु जं समरे स-वारणु असि-विहत्त तं देवेहिं घिधिकार दिण्णु आयहो जीविउ अप्पणउ छिण्णु धट्ठज्जुणे अज्जुणे जीवमाणे गुरु-कण्णहं सुंदरु कउ णियाणे ८
धत्ता भुय-डालहो णिवडिउ वालहो सोह ण देइ किवाणु किह । दो-धारउ जि.प्पडियारउ णट्ठ-वंसु कु-कलत्त जिह ॥ ९
दप्पु भड-भड-कडवंदणहो दुद्दम-णरिंद-दुप्पहरण वलु सयलु तो-वि आयामियउ
पहर तहो अज्जुण-णंदणहो णिट्टियई अणेय पहरण अरि-वासणु अरि उग्गामियउ
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