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तृतीय खण्ड : ७७ अपना हितकारी समझकर उनमें राग करता है, परन्तु विवेकी मनुष्य समझता है कि पुत्रादिकका परिकर संसारचक्रमें फँसाने वाला है, इसलिए उसमें तटस्थ रहता है। मनुष्य पुत्रको बहुत प्रेमकी दृष्टिसे देखते हैं, किन्तु यथार्थ बात इसके विपरीत है। मनुष्य सबसे अधिक प्रेम स्व-स्त्रीसे रखता है । इसीसे उसने स्त्रीका नाम प्राणप्रिया रक्खा है। स्त्री भी इसकी आज्ञाकारिणी रहती है। वह प्रथम पतिको भोजन कराती है पश्चात् आप भोजन करती है। पहले पतिको शयन कराती है, पश्चात् आप शयन करती है । उसकी वैयावृत्य करनेमें किसी प्रकारका संकोच नहीं करती। यह सब है, परन्तु पुत्रके होनेपर यह बात नहीं रहती। यदि भोजनमें विलम्ब हो गया, तो पति कहता है-विलम्ब क्यों हुआ? स्त्री कहती है-पुत्रका काम करूं या आपका । पुत्र ज्यों-ज्यों वृद्धिको प्राप्त होता है, त्यों-त्यों पिता द्वारा ह्रासको प्राप्त होता है। समर्थ होने पर तो पुत्र समस्त सम्पदा का स्वामी बन जाता है । अब आप स्वयं निर्णय कीजिए कि पुत्रने उत्पन्न होते ही आपकी सर्वाधिक प्रेमपात्र स्त्रीके मनमें अन्तर कर दिया; पीछे आपकी समस्त सम्पत्तिपर स्वामित्व प्राप्त कर लिया, तो वह पुत्र कहलाया या शत्रु ? आपकी सम्पत्तिको कोई छीन ले तो उसे आप मित्र मानेंगे या शत्रु ? परन्तु मोहके नाशमें यथार्थ बातकी ओर दृष्टि नहीं जाती है। यह मोह दर्शन, ज्ञान तथा चारित्र इन तीनों गुणोंको विकृत कर देता है। इसलिये हमारा प्रयत्न ऐसा होना चाहिए कि जिससे सर्वप्रथम मोहसे पिण्ड छुट जावे।"
(भाग २ पृ० २८८,२८९) इस दृष्टान्तके माध्यमसे पं० जोने स्त्री, पुत्र-प्रेमका जो वैराग्योत्पादक चित्रण किया, वह अद्वितीय है । इससे आपके जीवनके विरागताकी झांकी झलकती है ।
श्रावण शुक्ल १४ सं० २००८ को क्षेत्रपालमें रक्षाबन्धनका उत्सव हुआ। पं० श्री फूलचन्द्रजी सिद्धान्तशास्त्रीका रक्षाबन्धन-पर्वके विषयमें प्रवचन हुआ। पं० जीकी प्राञ्जल शैलीसे समाज गद्गद् हो गया। प्रवचनका सार कहते हुए वर्णीजीने कहा
"सबका सार यही था कि अपराधीसे अपराधी व्यक्तिकी भी उपेक्षा न कर उसके उद्धारका प्रयत्न करना चाहिए। श्री अकम्पनाचार्यने बलि आदि मन्त्रियोंके द्वारा घोर कष्ट भोगकर भी उनकी आत्माका उद्धार किया है। जैनधर्मकी क्षमा वस्तुतः अपनी उपमा नहीं रखती।"
(भा० २ पृ० २९०) ७. इंटर कालेजका उपक्रम
ललितपुर बुन्देलखण्ड प्रान्तका केन्द्र स्थान है मूलसंघ कुन्द-कुन्द अन्वयका अनुयायी दि. जैन परवारोंका गढ़ है। यहाँ आत्म-ज्ञानकी शिक्षाका आयतन नहीं था । परन्तु पं० श्री फलचन्द्र जी सिद्धान्तशास्त्रीकी विशिष्ट प्रेरणासे समाजमें शिक्षाका केन्द्र खोलनेकी हृदयमें लहर दौड़ने लगी। पं० जी की प्रेरणासे समाजके गणमान्य लोगोंने बहत अनुदान लिखाया और कॉलेज खोलनेका संकल्प किया। इस संकल्पका समाचार वर्णीजीको मिला. वे अतिशय प्रसन्न हुये और कहा
"मुझे यह जानकर हर्ष हुआ कि पं० फूलचन्द्रजीकी विशिष्ट प्रेरणासे नगरके लोगोंमें इंटर कालेज खोलनेकी चर्चा धीरे-धीरे जोर पकड़ती जाती है। वे इस विषय में बहुत प्रयत्न कर
(भा० २ पृ० २९४)
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