Book Title: Fulchandra Shastri Abhinandan Granth
Author(s): Jyoti Prasad Jain, Kailashchandra Shastri
Publisher: Siddhantacharya Pt Fulchandra Shastri Abhinandan Granth Prakashan Samiti Varanasi

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Page 616
________________ समाजका दुर्भाग्य समाजकी सामयिक परिस्थितियोंको देखकर सोचा गया था कि जातीय या उपजातीय सभायें समाजको अवनति दशासे ऊपर उठा देंगी । इसी आधारपर इन सभाओं का निर्माण हुआ था । कौन जानता था, कि अभी समाजके फूटे भाग्यमें उन्नतिमय जीवन बिताना बदा ही नहीं है अभी भी समाज अवनति गर्तकी अन्तिम तहतक नहीं पहुँची है, समाजकी वर्तमान रोमांचकारी दशा ही अवनतिका अन्तिम स्थान नहीं है इससे भी भयानक दुरवस्था जो हमारी कल्पना के परेकी वस्तु हो सकती है— को समाजके लिये जाना भी शेष है । यही बात है, कि ये सभायें कलहके दलदल में फँसकर समाजके लिये केवल भार स्वरूप बन रही हैं जिससे समाजोन्नतिको उत्कृष्ट चाह रखने वालोंको समाजकी चिन्ता तो दूर रही, केवल सभाओके उत्थानकी चिन्ताने ही घेर लिया है । शान्तिप्रिय लोगोंके हृदय में तो आज यही भावना पैदा होने लगी है कि इन सभाओंका जीवन ही जल्दीसे जल्दी निःशेष हो जाय तो समाजको चैन मिल सकती है । अभी-अभी लूणियाबासमें खंडेलवाल महासभाका जो अधिवेशन होने जा रहा था उसके जो समाचार सुनने में आये हैं इसी प्रकारके और भी समाचार जो आये दिन सुनने व देखने में आते रहते हैं उनसे यदि उल्लिखित विचार सर्व साधारणमें पैदा होने लग जाँय तो इसमें आश्चर्य की बात ही क्या है । खंडेलवाल जाति दि० जैनोंमें प्रमुख जाति है दि० जैन समाज उसके धनबल और जनबलपर जितना गर्व करे उतना थोड़ा होगा, ऐसी जाति में यदि कलहके अंकुर पैदा हो जायँ, इतना ही नहीं, कलहाग्नि अपना उग्र रूप धारण करके अपनी लपटोंसे समस्त जातिको भस्मसात् करनेके लिये तैयार हो और जिसका दुष्परिणाम समस्त समाजको अत्यन्त शोचनीय स्थितिको पहुँचाने वाला हो, तो समाजका कौन विवेकशील व्यक्ति इसकी कल्पनासे भयभीत न होगा, तथा कौन सहृदय दि० जैन समाजकी इस दयनीय स्थिति पर दो आँसू नहीं गिरायेगा । 'इस अधिवेशनमें लोहडसाजन आदिके प्रश्नको लेकर मार पीट हुई और यहाँ तक गड़बड़ी पैदा हुई, कि राज्यके अधिकारी वर्गको इस परिस्थितिका सामना करना पड़ा और उससे भी जब परिस्थिति नहीं सम्हली तो अधिवेशनको ही स्थगित कर देना पड़ा । इन समाचारोंमें रंचमात्र भी सन्देह नहीं मालम पड़ता है । यद्यपि संवाददाता लोग विरले ही ऐसे होंगे जो अपने अधिकार पूर्ण महत्त्वको समझते हुए समाचारोंका अतिशयोक्तिपूर्ण एकपक्षीय चित्रण न करके संवादोंमें केवल घटित घटनाओंका ही उल्लेख करें, इसलिये "अमुक पक्षने अमुक प्रकारकी त्रुटिकी आदि, इन समाचारोंके विवादमें न पड़ करके समाजके प्रमुख व्यक्तियोंके सामने हम केवल इस बातको रख देना चाहते हैं कि (१) ऐसा होता क्यों है ? (२) क्या हमको ऐसा करना शोभा देता है ? (३) यदि नहीं तो फिर हमारा कर्तव्य क्या है ? इन प्रश्नोंपर वे गम्भीरतासे मंथन करें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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