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५७८ : सिद्धान्ताचार्य पं० फलचन्द्र शास्त्री अभिनन्दन-ग्रन्थ
दोनों पत्रोंमें विशेष कुछ अन्तर नहीं था। थी-डेसे अन्तरको छोड़ कर दोनों पत्र समान थे । इसलिये यहाँ पर इस पत्रको छापनेकी विशेष आवश्यकता प्रतीत नहीं होती है।
इस पत्रके उत्तरमें सेठ वीरचन्द कोदरजी गांधीका जो पत्र आया था वह खाली दिया जाता है। श्रीमान् धर्मप्रेमी पं० फूलचन्द दरयावलाल शास्त्री नातेपुते यांसी फलटनहन वीसा हुँबड पंच सेठ पानाचन्द जयचन्द तर्फे गांधी वीरचन्द कोदरजी यांचा सविनय जयजिनेन्द्र वि०वि० आपले ता० १५-११-३७ चे पत्र मिळाले वाचून आनन्द झाला । आपण हाती घेतलेले काम महत्त्वाचे आहे । आपले काभांत यश येवो अशी धी जिनेन्द्र भगवंताचरणी आमची प्रार्थना आहे। येऊन प्रयत्न करावें । न्याय आणि उचित कोणतीही गोष्ट आम्ही ऐकण्यास केव्हाही तयार आहोत । यावें । कळावे । मिती कार्तिक वद्य १३ सं० १९९४ ।
आपला सेठ पानाचन्द जयचन्द तर्फे
वीरचंद कोदरजी गांधी इस तरह दोनों बाजूके पंचोंके साथ पत्र व्यवहार हो जानेपर मैं फलटण गया था । पहिली बार इस एकीके सम्बन्धमें मुझे आठ दिन रहना पड़ा था। बीचमें श्रीमान् सेठ हीरालाल मोतीचन्दजी गांधीका काम सोलापुर होने के कारण अधिक दिन रहना पड़ा। सेठ जीके सोलापुरसे आनेपर श्रीमान् सेठ रामचन्द धनजी दावडा नातेपुते इनके यहाँ चि. सौ० जयावतीका लग्नसमारम्भ होने के कारण यह विषय बीच में ही स्थगित करना पड़ा। लग्नसमारम्भ हो जानेपर दोनों बाजूके पंचोंके आमन्त्रण होनेसे पुन मैं फलटन गया । अबकी बार सफलता मिली जिसका खुलासा मैं पिछले अंकमें दे चुका है। आशा है फलटनकी धार्मिक समाज अपने कर्तव्यको समझकर आगे प्रेमभावसे रहनेका प्रयत्न करेगी। यदि समाजमें प्रेम न हआ तो नियमों में क्या रक्खा है। संगठनके लिये नियम होते हैं। उसी प्रकार प्राचीन नियमोंमें समयके अनुसार बदल भी करनी पड़ती है इन सब बातोंको लक्ष्यमें रखकर फलटणके पंच परस्पर एक दूसरे हितकी बात सुननेमें संकोच नहीं करेंगे और प्रेमसे दूसरोंके लिये संगठनका पाठ देनेके योग्य बननेका प्रयत्न करेंगे। मेरा तो यह निश्चय है ही कि जब तक यह एकीका पौधा दृढ़ नहीं हुआ है तब उसकी मैं सेवा करूंगा।
पं० फूलचंद दरयावलाल शास्त्री
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COMMARADIO
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